পাতা:অনাথবন্ধু.pdf/১৪৭

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निवेदन । विजया दशमी के उपणच में हम चपने पाठकों को बधाई दत हुए जगत्जननी से चयने सच्चाट सहित सर्वसाधारण की अंजख कामना करते हैं एवं दबनागरी भाषा मे कुछ निवेदन ले उपस्थित होने का साहस करते हैं यदि रुविकर हुआ तो योहाँ मेवा किथा करेंगे। जिस चनाथबन्धु के कर्यकला कुतूहख से इस खम्रवत संसार का चख एक समान चल रहा है। जिसने हम लोगों को कभी योगी होने की शिक्षा ही है, जिसने हमें यह उपदेश दिया है tL S DD BY BB DDi D BD DD DB DDD tD DD नही होती उसी देवादिदेव कमलापति की "अनाथबन्धु" उभय कर जोड़ प्रणाम करता है। जो पृथ्वी का भार हरण करेन के निमित युग २ में अवतार धारण करते हैं, जो अनादि अनन्त और तथा जिनके रूप की तुलना नहीं। अहा नवदुर्वादल श्याम कान्ति पौतवसन पद्मपखासलोचन, प्रफु ब मुख, कोटि २ चन्द्रमा सूर्य जिनके पादपद्म में सुप्रकाशित हैं, वही पादपद्य हम भवार्थव पार होने की अभय तरणी है ; इस तरणी का खेवेया अनाथवन्धु ही है इसलिये इसकी মাৱৰ ভৈলা অবলাবােয়ন্ধ উট । अहितीय है, जो सब जीवों में विराजमान हैं । यह संसार उसी खौलामय की खौखा का नमूना है। संसार की जिस वस्तु पर विचार किथाजाय वही उस लीलामय की आश्चर्यKKB BB D DDDB Du Y BD DDS DDDD अनाथत्व मै भो वर्तमान रहती है । इस विश्वमण्डल के गर्भ में अनाथ अनेक तरह के हैं। कर्म जाल में बंध कर मनुष्य कई प्रकार से अनाथ होजाते हैं परन्तु सब अनाजों का एकमात्र शरण वही अनाथशरण है उसी का दूसरा नाम चनाथबन्धुभी है। यह अनाथवन्धु उस अनाथबन्धु से LBuD Y D D DBDBD LLLB BBD BB BDBB S DDB SYS DGB DDDS BBKD SJSB BLBD D नहीं है। शो ममता के चंगुल में पस कर अपने को तथा उस अनाथपन्धु को भी भूख गया है, वह जिस समय मोह निद्रा से DBB SLS SDDDDDBDBDBBDS BDD Y BLB YDDu SBD B SDD DD LLD t DBB DDD BBB यी सदा दु:ख भीख समुद्र में ही गीते खगाया करता है उसके zKK LBBBBBL LDD BDD S S S DDD TDBBDDBB BD B BBD Y EB DS DDDBBDDBDBBDiKD S tt DBDBS DBBB Y पारिजात सौरभ का अविर्भाव हो उठता है, सुधाधि से जखत हुए मनुष्य का दु:ख नाश हो यान्ति होती है उसी 'चनाथवन्ध," को चापलोगों से परिचित कराने के लिये एवं उसी चनाथबन्धु को पानेका उपाय बताने के लिये इख 'अनाथवन्धु' का आविर्भाव आज लोकसमाज में होना समुचित है। साधकों के हितार्थ हिन्दू शाख में उस दौनबन्धु के अनेक कप तथा अनेक साधन प्रणाली लिखी हुई हैं। हम इस श्रेणौके अनाथों के लिये उन सब कथाचों का वर्णन सरल भावसे लिखा करेंगे। इसके अतिरिक्त योगशास्त्र, नौतिशास्त्र, घर्मशास्त्र इत्यादि कौ साधारश्च बातें भौ सर्बसाधारण कें समभाने योग्य भाषा में लिखी जार्यगी। मनुष्य जिससे संसार म' रह कर साधन पथ में अग्रसर हो, "अनाथबन्धु,’ भ' उसके विष उपाय बतखार्थ जायंग इस प्रकार यह पविका अपने 'अनाथदन्धु" नाम की सार्थक करने की चटा करेंगी । दूसरी श्रेणी के अनाथ :-जो खोग सांसारिक रीति से ज्ञानहौन हैं। वर्तमान समयमें चारोंतरफ जड़वस्तुओं का ज्ञान अच्छी तरह फेल रहा है। इस समय बिना ज्ञान या विद्या के संसार में काम नहीं चल सता । इमलीय चाहैं जितने विद्दान या चूनानी अपने की क्यों न मानेल, किन्तु हमारा ज्ञान वास्तव में अयनग हुमलीग दो एक विषर्थ का सामान्य ज्ञान प्राम भले ही करलें पर मैकड़ों विषयों में अनभिज्ञ रहते हैं । यहां तक कि हमलोगों में जो शिक्षित हैं, वे हक्ष इत्यादि काटादिक जो उनकी चाखों के सामने नित्य पड़ते हैं उनके भी वे गण नहीं जानते। इनका गुण जानने पर संसार का कितना उपकार हो सकता है, यह लेखनी द्वारा जहाँ कहा जा सका। दु:खका विषय है कि खता, द्वच (रूप में औषधि रहते हुए भी वहुधा औषधि यों का ज्ञान न रहने के कारण प्राण हरण ही जाता है इस अवस्था में हमलोगों से बढ़ कर अनाथ और कौन है ? इस श्रेणी के अनाथों को शिक्षा के लिये ‘अनाथबन्धु,” म' इस विषय के जानकारों के सुन्दर रे लेख प्रकाशित हुआ करेंगे । इसके सिवाय छषि, शिल्प, वाणिज्य, समाज-विज्ञान, अर्थशाश्व. चिकित्सा शास्त्र, (एलोपैथिक एवं वैद्यक) इतिहास, নিয়াল, दर्शन अनक्षत्व, इत्यादि के सम्बन्ध मै इसमे अनेक आवश्यक निबन्ध भौ प्रकाशित हुचा करेंगे। सारांशयह कि राजनीति के अतिरिक सभी जानने योग्य विषय अनाथवन्धु, में प्रवाबित हुआ करेंगे। हितौथ श्रेची के अनाथों की इस ‘अनाथबन्धु,” शाबी पविका की संकीर्ण एवं सौमाबद्ध है। कैसे