পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/১৭

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 उनके रहस्यवादी काव्य की विशेषता की कुछ चर्चा कर लेनी चाहिए। जब 'गीतांजलि' का अंग्रेजी अनुवाद पहले-पहल प्रकाशित हुआ, तब युद्ध से जर्जर और तिक्त बने संसार में इसके प्रेम और शान्ति के संदेश के लिए पश्चिमी देशों ने इसका खूब जोरों से स्वागत किया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उस पतले-से संस्करण की कविताएँ एक गंभीर शान्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं।

 इस पुस्तक में रवीन्द्रनाथ की कविता का जो विषय है, वह हमारी दैनंदिनी अभिज्ञता से ही लिया गया है। उनकी भाषा बोल-चाल की और भाव-चित्र सरल हैं। फिर भी सौंदर्य और सूदुर के इंगित का एक ऐसा गुण उनमें निहित है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यूरोप तथा अमेरिका के पाठकों के लिए ये कविताएँ आश्चर्यमिश्रित हर्ष उत्पन्न करने वाले एक नये आविष्कार—जैसी थीं। लेकिन रवीन्द्रनाथ की रचनाओं को मूल बंगला में पढ़ने वाले पाठकों के लिए ये कविताएँ उनकी प्रारम्भिक रचनाओं की स्वाभाविक परिणतिमात्र थीं। प्रकृति और मनुष्य के प्रति उनका प्रेम अनजाने भाव से भगवान् के प्रति उनके प्रेम में विलीन हो गया था। उनके निजी जीवन की गंभीर व्यथा ने उनके भाव-चित्रों और वक्तव्य विषय को अत्यन्त मधुर और गहन बना दिया था। उनके अनुभव के विकासक्रम ने उन पर यह द्विधा-रहित सत्य प्रकट कर दिया था कि जीवन मात्र रहस्य से आवेष्टित है। मनुष्य-जीवन की करुणा और विस्मय ने उनकी रचनाओं में एक नई सहानुभूति और मर्मस्पर्शिता ला दी थी।

 रवीन्द्रनाथ की, अंतिम दिनों की, बहुत-सी गीतियों की एक विशेषता यह रही है कि वे अत्यन्त सहज-सरल हैं। प्रारंभिक काल की अपनी रचनाओं में उन्होंने संस्कृत के बहुत-से प्रसंगों और ध्वनिसाम्यों का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया है। बहुत सी कविताओं में प्राचीन भारतीय साहित्य की वस्तु-योजना और भावभंगी का समावेश हो गया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने पुराने को