পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৭৩

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

የቧጳ कादम्बरो पूर्वभागे मूत्ति रुत्तप्त कनकावदाता परिस्फ रन्ती सौदामिनौव (१) चन्नुष प्रतिइति तञ्जलि, सततमुदासीनं महाप्रभावतया भयमिवोपजनयति प्रथमीपमतख । शुष्क-नख-काश-कुसुम निपतितानल चटुल इति नित्बमसहिष्णु तपखिनां प्रतशुतपसा-(२) मपि तेज प्रष्टात्या दु सह (३) भवति, किमुत सकल भुवन वन्दित-(४) चरणानामनवरत तप सलिल-चालित-[५] मलाना कर-कमल तलामलकफखवदखिख [६] जगदालोकयता दिव्य न चतुषा भगवतानेव विधानामवच्चयकारिणाम.[०][छ] । पुण्खानि हि नामग्रहणान्यपि महामुनौनाम., कि पुनदृशन्ानि । धन्यमिदमाश्रमपदमयमधिपतिर्यत्र ।। ६धवा भुवनतुलमेव धुन्ध ാ و حمام جمعه میرسیحیی تعمیرعی (ख) अबेति। ग्रान्तापि प्रसव्रापि। उत्तप्तकनकावदाता तप्तकाञ्चनवत् निर्षला परिसक्नु रानी प्रकाशमाना सौदामिनी विद्युदिव । यत्रोपमालडार । उदासीनापि मध्यखापि अन्वर्षा अयजनने प्रयीजनरतिपि इय मूनि रित्यथ प्रथमम् उपगतख उपखितख मम भयमुपजनयतीव । अत्र क्रियीत्प्रेचाखडार । गुष्क षु नलेषु खनामप्रसिद्धढषविशेषेषु काग्रकुसुमेषु च निपतितो य भनखी वज्ञि तख व चटुला चखला शैव्रतरा इति प्रसरथव्यापारी थस्य तत् तथा नित्य सव दा चसहिषष्ठ परप्रभावनिति शेष प्रतलु भत्यख्य तपी येषां तेषामपि तपखिन तेज प्रल्लत्या स्वभावेल दु सह्र भवति अन्य धानिति गेष । यत्र प्रथलविीषी लुप्तीपमालद्धार । थनवरत तपांखब सखिखानि जखानि त चाखितानि धौतानि मखानि पापान्यब मखानि कद्द मादौनि यस्तषाम् भत्र शिष्टपरम्यरितरूपकमखद्धार । तथा दिव्य न खगाँयेन चन्नुषा शाननधनेनेत्यथ करकमखतखामलक फबवत् पाषिकमलतलखितधात्रौफखवत् भखिख सव जगत् चाखीकयतां पक्षताम्। भबीपमाखडार । एव विधान जावाखिलुख्थानाम् अघचधकारिणी दम नमात्र गाँव परेष पापविनाशकारिणाम्। (ज) पुण्य़ानौति । पुण्यानि पुण्यजनकानि । नाबां ग्रहणानि उच्चारणानि । थाश्रमपदम् चाश्रमरूप खानम् । भवनितखख मस्य खोकख कमखयोनिब्र श्रा तत्खरुप इत्यथ तेन । अत्र निरछ कैवलरूपक () উহাকে দেখিয়া আমি চিন্তা করিতে লাগিলাম— তপস্তার মাহাত্ম্য কি আশ্চৰ্য্য। কারণ, ইহার এই আকৃতি তপ্তকাঞ্চনের ন্যায় নিৰ্ম্মল এবং শাস্ত হইলেও দীপ্যমান বিদ্যুতের স্থায় আমার নয়নের তেজ প্রতিহত করিতেছে, আর আমি এইমাত্র প্রথম আসিয়াছি, সুতরাং সৰ্ব্বদা পরের ভয়োংপাদনে প্রয়োজন না থাকিলেও আমার যেন ভয় জন্মাইতেছে। শুষ্ক নল ও কাশপুষ্পের (কেশের ফুলের) উপব পতিত অগ্নি যেমন তৎক্ষণাৎ বিস্তৃত হইয় পড়ে, সেইরূপ ত্বরিতগতি এবং সৰ্ব্বদা পরপ্রভাব অসহিষ্ণু সাধারণ তপস্বিগণের তেজও অঙ্গের পক্ষে স্বভাবতই দু সহ হইয়া থাকে, আর সমগ্র জগতেব লোক যাহাদের চরণ বন্দন BBS DDBB BBBB BB BBBS BB BBBB BBBB BB DBB DD চক্ষুদ্বারা করতলস্থিত আমলকীফলের স্থায় সমগ্র জগৎ দর্শন করিতেছেন এবং র্যাহার দর্শনমাত্রেই লোকের পাপক্ষয় করিয়া থাকেন এবংবিধ মাহাত্ম্যশালী সেই মহর্বিদিগের তেজের কথা আর বলিবার কি আছে। (জ) মহর্ষিদিগের নামোচ্চারণও পুণ্য জন্মাইয়া (R) सौदमनीय। () तलुतपसाम्। (ર) छचित् दु सइमिति नाति । (४) भुवनतख । (५) तप चपितमखाना । (५) करतखामलकवत् । (e) अधचयकारचाणि पुणानि ।