পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৯১

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teo क्षtट्श्वरी। पूर्व भागै चन्द्रातपेन (१) जगति, अबश्ञ्चायजलविन्दु-(२) मन्दगतिषु विघटमान कुसुदवन-(३) कषाय-परिमलेषु समुपीढ निद्रा-भराखस तारकीरन्धोन्य ग्रथित-पचयुर्टरारब्ध-रोमन्व मन्थर सुख सुखार्सीनराश्रममृगरभिनन्दितागमनेषु प्रवइत्सु (४) निशासुख-समीरणेषु, (५) प्रचैयाममात्रावखण्ड़िताया विभावर्ययाम्, हारीत छाता हार मामादाय सर्वस्तै सङ्घ सुनिभि (६) उपस्वत्ध चन्द्रातयोद्धासिनि तपोवर्नक देगे वेत्रासनै सुखोपविष्टम् (०) अनतिदूरवत्तिना जालपादनाजा गिर्थण दर्भ पवित्र धवित्र पाणिना (८) मन्दमन्दम् (e) उपवीज्धमान पितरमवोचत् (५०) (फ) “तात । (११) सकलेयमाश्वर्य-श्रवणकुतूहलाकलित ह्रदया(१२) समुपखिता तापस विशेषख ध.खिपटलेनेव रैणसमृईनेव चन्द्रख चातपेन चाखीकेन धवलौछते सति । धत्रीपमाखड़ार । थबश्त्वाय जलविन्दुभि शिशिरजलविन्दुवइनरित्यथ मन्द गतिय षां तेषु । इत्यादौनि सप्तम्यन्तपदानि वच्यमाणनिशामुख समौरणेष्वित्यस्य विशेषणानि । विघटमानस्य प्रस्फ़ टत कुमु~वनस्य कषाय सुरभि परिमखी विमद्द गन्धी येषु ताद्वशेषु । तथा समुपीढन उपखितेन निद्राभरेण निद्रातिशयेन भलसा निस्यन्दा तारका कनौनिका येषां त अन्वीन्थ परस्प्रर ग्रथितानि नयनमुद्रणात् ढढसलग्रानि पद्मपुटानि नेत्रलीमानि येष तँ तथा धारब्धधु पूव मुपक्रान्तषु रोमन्थषु उदृगौप्य चवि तचब ऐषु मन्थराणि निद्रावेशादखसानि मुखानि येषां त खित्वा खित्वा रोमन्थ कुर्वार्णरित्यथ सृखासौनै सुखेनीपविष्ट आश्रमस्वर्ग अभिनदित स्यशसुखीपलक्षात् प्रशसितम् आगमन येष तेषु निशामुखसमौरणेषु प्रदीषवायुषु प्रवइत्सु सञ्चलत्सु सत्सु । तथा विभावर्यां रात्रौ भईयाममात्र ण भवखण्डितायां नूनतां गतायां सत्यां दण्डचतुष्टये भर्तौत इत्थथ । चन्द्रस्य आतपेन थालीकैन ज्योत्खया उङ्गासते विशेषेण दीप्यत इति तक्षिग् । वॆश्वास्रमॆ वॆतवनिर्मिताश्विने । द्भवत् कुष्यवत् पक्षेित्रम् ध्विव_ङ्गषुझनिक्ति व्यञ्जग पाणौ यस्य तेन । ধবলবৰ্ণ করিল , প্রদোষসময়ের শীতল সমীরণ শিশিরবিন্দু বহন করষা বিকসিত কুমুদ্রবনের সৌরভ লইয়া, মন্দগতিতে বহিত হইতে লাগিল , তখন ত পাবনের রিণগণ মুখে উপবিষ্ট হইয়া মনে মনে সেই ষায়ুর আগমনের প্র । সা কবিতে লাগিল , কারণ-সেই বায়ুর সংস্পর্শে তাহদের অত্যন্ত নিদ্রার আবে হওয়ায় নয়নের তার নিম্পনা হইয়া আসিতে ছিল, নয়ন মুদ্রিত করায় তাহার লোমগুলি পরস্পর স লগ্ন হইতেছিল এই অবস্থায় চব্বিত চৰ্ব্বণ করিতে সেই হৰিণগণেব মুখ ক্রমে নিশ্চল হইয়। আসিল এ দিকে হাতে আমাকে আহার করাইলেন রাত্রিব প্রথম ধামার্জও (চারি দণ্ড) অতী গু হইল তখন হারাত আমাকে লইয়া সেই সকল মুনিগণের সহিত পিতা জাবলির নিকট উপস্থিত হইলেন। তখন মহর্ষি জাবালি, চন্দ্রের আলোকে দীপ্যমান তপোবনের এক দিকে বেত্ৰালনে মুখে উপবেশন করিয়া ছিলেন, অনতিদূরবর্তী জালপাদনামে একজন শিষ্য কুশের স্তায় পবিত্র মৃগচৰ্ম্মনিৰ্ম্মিত ব্যঞ্জন হস্তে করিয়া গুরর প্রতি মন্দ মন্দ বায়ুসঞ্চালন করিতেছিলেন , এই অবস্থায় কুমার হারাত (१) झचित् चन्द्रातपेन इति पाठी जाति । (२) विन्दुपतनशौतेषु । (३) षण्ड़ । (४) प्रवात्सु । (५) सनौरैपु । (१) त म हामुनिमि । (७) बेत्रासनोपविष्टम्। (८) नातिटूर्वत्ति ना पवित्रपाषिना। (९) मन्दम् । (१ ) उवाच । (११) ई तात ! । (१९) भाकुखितष्ठदया ।