পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩০১

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२८० वॆदृिश्बरी प्रेवभागै चितितलम् उत्खात धूलि धूसरित क्रोडरोम राजिना दक्षिणखुरेणारोहणायान्त्रय त्रिव स्फुरित घ्राण-विवर घघरध्वनिमित्र मधुरमपरुष (१) डुङ्कारपरम्परानुबद मतिमनोहर हैषारवम् (२) अवरोत् (च) । अथानन मधुर इषितन ( ) दन्तारोहिणाभ्यशुष्व व इन्द्रायुधमारुरोह चन्द्रा पीड (क) । समारुह्य त प्रादेशमात्रमिव त्रलोकयमखिल मन्धमानी निगत्य, जलधर-(४) विसुतोपलासार परुषेण जजरयतेव रसातलमतिनिष्ठरेण खुरपुटाना रवेण खुररजोनिरुद्ध घ्राण-घोर घोषेण च हैषिर्तन (५) बधिरोष्ठात-सकल ھ مہمیــمہ:۔ नीह्यापिताभि ध.लिमिभूरणभि थ.सरिता ध.चवर्षोंछता क्रीडस्य रोमराजिय न तादृशेन दचिणखु,रण स चन्द्रा पौख्रम् चाप्यग्नेिव सन् सुरितस्य सन्टितय घ्राणविवरस्य जालिक्षारन्व स्य धी धध रध्वनिति च मिश्च संयुताम् मष्ठर। सुश्राव्यम् अपरुषधा अकक ग्रया कुड़ारपरब्यरया हुमिन्थ व शब्दथेँ गह्या अनुषङ्घ सनिालित म् श्रतिमर्गीहर छैधारव मकरीत् । भव कियीत्मचाइयेन सडीर्णा खभावोतिारखड़ार । थही । अश्वईषारवस्य मधुरतां मनोइरताच्चीपवण यन् कविरसौ कोकिल कामिनी कलकण्ठरव बौद्या निनादच कमिवाश्रौषौत् । (क) अथेति । अनेन इन्द्रायुधेन कत्र मधुरहेषितेन सुश्राब्यहेषारवैण करणग दत्ता थारीहपाय अभ्यशुझा अनुमतिय स्य स इव चन्द्रापौड । अत्र क्रियीतप्र चाखङ्कार ! (ख) समारुघ्रति । तमिन्द्रायुध समारुह्य चन्द्रापौड अखिल व्र लोक्य त्रिभुवनम् प्रसारिततज्ञ त्यस्त्र छ परिमित मान प्रादेश प्रदेशिन्यादिभि सांईमइष्ठ वितते सति । प्रादैशताल गोकण वितस्तयीय थाक्रमम् । ब्रेत्यभिधानचिन्तामशि ! तश्नावमिव मन्चमाल *न्द्रायुधस्य संभाषनॊौधनिरतिश्थवेगवंीजातिश्रौघ्नजङ्घनसम्भवादिति भाव निर्गत्य अश्वसैन्वमपश्यदिति परेणान्वय । अत्र गुणोत्य चालडार । थत्र हितैौयान्तपदानि अश्वसैन्यमित्यस्य विशेषणानि । जलधरौमे घै विमुती द्वटी य उपलासार सन्तता शिलाद्वटिस्तै नेव तस्य रववदित्यथ परुषेण सुति दु खावहन रसाया भुवत्तलम् उपरिभाग जज रयतेव विदारयतेव । अत्र क्रियीत्य चाखड़ार । तथा भतिनिछु रण नितान्तककशेन खुरपुटानाम् भश्वखुरायाणां रवेण शव्दन तथा खू,ररजीभि खखखुरपुटीलया पतध.खिभि निरुद्धानां परिपूरितमायाग्रं घ्राणानां नाखिक्षाजf घोरषीषी दारुषश्ब्दो य अन्। तादृशेन इंषितॆन झषारवेषं च बधिरीश्झतानि চন্দ্রাপীড়ের প্রতি তিৰ্য্যগ ভাবে দৃষ্টিপাত কবিয়া দক্ষিণ খুদ্ধার বারংবার ভূতলে তাড়ন করিয়া উখিত ধূলিরাশিতে ক্রোড়ের লোমসমূহ ধূসরবর্ণ কবিয়া আহবান করিতেই যেন স্পদিত নাসিকবিরুবে ঘর্ঘর শব্দস যুক্ত ও অকৰ্কশ হুঙ্কারসমন্বিত দুশ্রাব্য ও অতি মনোহর হ্ৰেধারব করিল। (ক) তদনন্তর চন্দ্রপীড়, ইন্দ্রায়ু ধর মধুব হ্রেধারবে আরোহণের অনুমতি পাইয়াই ধেন তাহার পৃষ্ঠে আরোহণ কবিলেন, (খ) আরোহণ করিয়া সমস্ত ত্রিভুবন যেন প্রাদেশপ্রমাণ মনে করিয়া বিদ্যালয় হইতে নির্গত হইয়া অসংখা অশ্বারোহী সৈন্ত দর্শন করিলেন। মেঘমুক্ত শিলাবৃষ্টির শব্দের স্থায় শ্রতিকঠোর ভূত~েব যেন বিদারণকারী ও অত্যন্ত কর্কশ খুরপুটসমূহের শব্দে এবং খুরাঘ তে উত্থাপিত ধূলিসমূহে পরিপূর্ণপ্রায় নাসিকাবিবরের ভয়ঙ্কর শব (१) अपरुष । (९) भतिमनीभ्रझेषरवन्। (३) *वितेन । (७) मशयशशधर । () ¥धितेिन ।