পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৪৮

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कधयाँ महाश्खताया प्रभिसार । 烘烘恋 ग्रीतिमय इव जीवल्लोके, (ठ) भशिमणिग्रणालनिझरे प्रमोद मुखर मयूर रव रब्ब प्रदोषसमये, (ड) ग्टहोत-विविध कुरुम-ताम्वलाङ्गराग पटबास चूर्णया तरलिवायानुगम्यमाला, तेर्नब मूर्छानिहितन किञ्चिदाश्म्नान चन्दन ज्ञखाटिका खम्ब ध्रुसरा कुलाखकेन चन्दनरसचञ्चाङ्ग रागवेशेनाद्वेश (१) तद्देव च तया कण्ठ स्वितयाब्रमाञ्जया धबणशिखरश्बुब्बिन्धा च परिश्रांतमष्जर्यां, पद्मरागरविरश्मि निर्शितैलेब रज्ञाशुकेन क्वतशिरोऽवगुण्ठना केनचिदाकमीयेनापि परिजनेनानुप स्वघझमाणा तस्रात् प्रासादशिखरादवातरम् (ढ) । (उ) ज़न्द्रोदयेति । वन्द्रस्य उदयेन चानन्दनिभर प्रकीद्रातिशायी ग्नखिान् तादृशे चतएव मईीट्रधाविव सौते इति झैष जौवलोके माणिगणे रतिरसमये द्रव एङ्गारमवै इव उत्सवमये इव विलासमये इव तथा प्रौतिमये *व च सति । अत्र पद्राथईतुककाव्यलिङ्गीपमयोरङ्गाङ्गिभावेन सढर चतस्री गुणीत्य चाष इत्य तासां निधी निरपेक्षतया पुन ससृष्टि तथा रतिरसेति ख्यायिमावख खशब्दांतिदोष रसस्य खशब्दोशिदोषथ तौ च छत् षष्ठ्Jमय इवति पाठेन चमIघर्थौ । (ड) शशौति । यग्निमणयषन्द्रकिरणस्प्रभुं न जलस्राविणञ्चन्द्रकान्ता एव प्रपशाला अखनिर्गमनाखानि तेषां निभा री यद्मिन तादृशे तथा प्रमोदन मुखराणां शब्दायमानानां मय,राणा रव रम्य मनोइरे प्रदीषसमये जाते स्वति । चक्ष्व निर्ङ्’िक्तःक्षजिष्पकमज्जुः॥९ ।। (ढ) ग्टईौतति । ग्टहौतानि विविधानि कुसुमानि ताम्ब खानि भङ्ग राग पटवासचर्णनि च थया तथा ! मूच्छांनिहितेन मूच्छीकाले तरलिकया दर,न । किचिदाग्झाना कालेन शुष्कतया ईषदृघनौभूता या चन्दनस्य लखाटिका खखाने तिलकविशेषस्तत्र खग्रा अतएव ध सरा थाकुला विकैौर्णा अलका स्वलितकुन्तला यत्र तेन । श्र द्र ण तदानौमपि किचित् क्लिद्रन । चन्दनरसख चर्चा खपनमेवाङ्गराग स एव च वैशखन उपलधिता । SDD DD D DDD DDDDD D DDDD DBBBB BB DDDD DDDDD DDBBDD S DD -- - م. - عمد * লাগিল। (ঠ) চন্দ্রের উদয়ে আননে পরিপূর্ণ প্রাণিগণ মহাসমুদ্রের ন্যায় স্ফীত হহয যেন শৃঙ্গারময় উৎসবময় বিলাসময় এব হৰ্ষময় হ যা উঠিল । (ড) চন্দ্রকাগুমণিরূপ পয়নাল হইতে জলনি সরণ হইতে লাগিল, এইভাবে আমোদব ত শায়মান মযুদ্রগণের ব্লবে মনোহর হইয়া প্রদোষকাল উপস্থিত হইল। (ঢ) এমন সময়ে আমি পদ্মরাগমণির কিরণে নিৰ্ম্মিতের ন্তাষ একখানি রক্তবর্ণ বসনে মস্তক অবগুণ্ঠন করিয়া সেই অট্টালিকার উপর হইতে নামিলাম তখন তরলিক নানাবিধ পুষ্প তাম্বল অঙ্গলেপনদ্রব্য ও আবীর চূৰ্ণ লহয়। আমার পশ্চাৎ পশ্চাৎ অধিতে লাগিল। তব লক আমার ললাটে যে চন্দনের টিপ দিয়াছিল তখন তাহ কিছু ঘন হইয়া গিয়াছিল সুতরা আলুলায়িত কেশকলাপ তাহার উপরে স লগ্ন হই, ধূসরবর্ণ হইয়াছিল আর মূর্ছার সময়ে আমার শরীরে তরলিক BB BBB BBBB BBBS SBBBB BBBB BBS BB BB BBS BB BB BBB BBBBBB হইয়াছিল, সেই জপের মালা তখন ও সেইভাবেই আমার গলায় ছিল এব সেই পারিজাত (१) चाद्रौद्र च ।