পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৬৫২

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कंथायाम् उत्कण्ठितचन्द्रापीडचिन्ता । ६५e शिलातलास्तीर्णायासुभयत उपर्यपरि निवेशित बङ्गपधानायां कुथाया निपत्य केयूरकेयोत्सब्रे (१) ग्य्होतचरणयुगलखाभियथादिष्ट्रेष्ठ भूमिभारीपूपविष्टाभि कन्यकाभि परिष्ठती दोलायमानेन चेतसा चिन्ता विवेश (य) । कि तावदखा गन्धर्वराजदुडितु कादम्बय्र्या सहभुव एतै विलासा एवैट्टशा सकललीकन्त्रदय हारिण, आहोखिदनाराधितप्रसत्रेन भगवता मकरकेतुना मयि नियुक्ता , येन मा सास्रण सरागणाकूणितत्रिभागेण हृत्यान्त पतत स्मर शर कुसुम रजोरूषितै नेव चचुषा तिर्यग् विलोकयति (र) । मदिलोकिता धबलेन सिातालीकेन दुकूलेनेव लज्जयात्मानमावृणोति (न) । मल्लज्जाविवत्त मानवदना च प्रतिविम्बसtव्यादा हितौध কালধৰ্মৰাদি मणिग्टइम् खच्छन्द निर्वाध प्रविश्झत्थन्वय । भन्न ঘন ঘৰৱা । उभयत पाच यी उपर्य,परि निवेशितानि खापितानि वइनि उपधानानि यखां तथाविधायाम् कुथायां चिमकम्बले निपत्य स्वस्ताङ्ग सब्रवरह्याय । उत्सङ्ग क्रीड़ । दौलायमानेन सन्दइविचलितैन । (र) किमिति । सहभव सइजा । सरागेण सानुरागुण थाकूणित ईषत् सर्द्धीचित विमागत तौयी भागी यस्य तेन इतिविषये सख्याशब्दानां पूरणाथत्वमिति तूनामेव । हदयस्य अन्तम ध्य पततां सारस्य मदनख शरकुसुमाना शरौभूतपुष्याणां रजोभि पराग रुषित विच्छ रित तेनेव चक्षुषा तिर्यग वक्र विलीकयति । अत्र क्रियीत्मघालङ्कार ! पूव प्रत्यचदशनवंखाया ये ये भावा सञ्चातास्तानधिक्कर्तयैतानि ब्रवैौति भर्ती विलोकय तौथतोतसामीप्य वत्तमाना। इलामुत्तरवाका ध्वपि बोध्यम् । (ख) मदिति । किञ्च मया विलोकिता सतौ लज्जया दुकूलेनेव धवलेन विातालीकैन खकौथभन्दशाख प्रमया आत्मान खदैहमाद्वणेति । अत्र जात्युत्प्रेघालढार । شاعریجمیہ ہی ہیریہ۔ প্রবেশ কবিলেন, সেখানে মণিমঃ fণাৰ উপবে একখানি বিচিত্র কম্বল পাতা ছিল তাহার দুষ্ট দিকে ঘন ঘন বহুতব বালিস রাখিয়াছিল চন্দ্রপীড তাহাব উপরে শয়ন করিলেন , তখন কেযুবক অসি। তঁ র চরণযুগল ক্রোড়ে সংস্থাপন করিয়া স বাহন করিতে লাগিল DD BB BBBS BBBS BBB BB BBBBB BBB BBBB BBBB BBB BBDS এই অবস্থায় চন্দ্রাপীড সন্দেহাকুলচিত্তে চিন্তা করিতে লাগিলেন। (র) এই গন্ধৰ্বরাজকন্ত। কদম্ববীব এই সমস্ত হাবভাব কি স্বভাবতই এইরূপ সকল লোকের হৃদয়াকর্ষী ? না— আরাধন না কবিলেও ভগবান কামদেব আপন আপনিই প্রসন্ন হইয়া আমার প্রতিই কবাষ্টয়াছেন ? যেহেতু কদম্বর আমাকে যখন বক্রভাবে দেখিতেছিলেন তখন র্তাহার আনন্দশ্র নির্গত হইতেছিল দৃষ্টিৰ ভাব অমুরাগের স্বচনা কবিতেছিল এব তিনি নয়নের তৃতীয়ভাগ সঙ্কুচিত করিয়াছিলেন , তাঙ্গতে বোধ হষ্টতেছিল যে হৃদয়ের ভিতরে কামদেবের যে সকল পুষ্পময় বাণ পড়িতেছিল, তাহাব রেণুতেই যেন নয়টকে কলুষিত করিয়াছে। (ল) আবার আমি যখন তাহাব দিকে দৃষ্টিপাত করিয়াছি তখন লজ্জাবশত সুক্ষবস্ত্রের স্তায় শুভ্রবর্ণ মন্দ হাস্তের আলোকে নিজের দেহ আবৃত করিয়াছেন (ব) এবং (१) उत्सङ्गन । ८३