পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৭০৭

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७१४ कादब्बरो पूर्वभागे प्रियान्तिकगमनौत्सुक्धक्कतपचमिव करतलेन निरुन्धतीम, (१) (च) सुइसुइभुजलतया तुषारशिलाशालभस्त्रिकामालिङ्गन्तोम्, (क) मुडु कपोलफलकेन कपूरपुत्रिकामाक्षिष्थन्तोम्, (ख) सुडुच्चरणारविन्दन चन्दनपद्धप्रतियातनामामृशन्तीम्, (२) (ग) स्तनसक्रान्तनात्मसुखेनापि कुतूहलिनेव परिष्ठत्य विलोकधमानाम, (घ) कगापूरपल्लवेनापि खप्रतिविम्वपल्लवशायिना (३) सोत्कण्ठ नव जुब्बामानकपोलफलकाम्, (ङ) हारेंरपि मुज्ञातमभिमैदनपरवशेरिव प्रसारित दय यषिान् तत् अतएव प्रियस्य चन्द्रापौड़स्य अन्तिके गमनाय यदौत्सूकमुत्कण्ठा तेन छतौ पधौ पतत्रयुगख यख तदिव कुचकलसयुगल करतलेन निरुन्धतौम् अवरुन्धतीम् अन्यथा यदि गच्छ्रेदवैति भाव । अत्र पच करणेत्य चणात् क्रियीत्य चाखडार । चामरप्रतिविश्वयुगल स्तनयुगलस्य पचख्यानौयम् चामरयीश्वलनातत्प्रति विष्वीरपि चलनम् तखलनाञ्च ए° कस्यापि दित्वप्रौति अत् एव च गमजसमाबनेति बीध्यम् ! (क) मुड़रिति । भुजलतया तुषारशिलाशालभञ्चिकां श्रौतलप्रस्तरनिर्चितपुतलिकां मुहुमु हुराख्द्रि नौम् सन्तापग्रान्त िथमिति भाव ! (ख) मुड़रिति । कपोलफलकैन कपूरस्य पुत्रिकां पुतलिकां मुहुराक्षिष्यन्तौम् पूव वङ्गाव । (ग) मुकुरिति । चरणारविन्देन चन्दनपढख गाढचन्दनद्रवख प्रतियातना प्रतिमूत्ति मुहुरास्वश्रन्ौम् आम५ इष तौम्। पूव बह्लाष । एतज तापातिष्यंी श्यक्यते । (ध) शनेति । तनयी सक्रान्तन प्रतिविम्बितेन थाह्ममुखेनापि कुतूइलिनेव अस्या कौट्टशैौ दया जाता इति कौतुकबतेव सता परिद्वत्य विद्वत्य प्रतिविम्बख विश्वाभिमुख्यादिति भाव विलीकमानाम् । चत्र गुणेत्य चा खस्तार । (ङ) कण ति । कण पूरपल्लवेनापि कर्णाभरणैौभूतकिसखयेनापि खस्य प्रतिविम्ब अर्थात् कपीखपतिते प्रतिबिम्बभूते पल्लवं शेते तिष्ठतैौति तेन एतेनास्यापि तापवस्व सूचितम सीत्कण्ठ नेव सता चुष्वामान कपोखफखक यस्याताम् । गुंीत्वचा । (च) शारीरिति । मुन भात्प्रा येषां ०जाँवना,ना रपि मदनपरवशरिवेति विरीध मुक्ता मौनिकानि भात्मन কাদম্বরীর স্তনযুগলে সেই চঞ্চল চামরযুগলের প্রতিবিম্ব পড়িতেছিল , তাহাতে বোধ হইতে ছিল যে প্রিয়তম চন্দ্রাপীডের নিকটে যাইবাব জন্য উৎকণ্ঠাই যেন স্তনযুগলের দুই দুইখান। পাখা করিয়া দিয়াছে , তাই কাদম্বী করতলম্বাবা সেই স্তনযুগলকে অবরুদ্ধ করিতেছিলেন। (ক) কাদম্বর বাহুলতাদ্বারা শীতলপ্রস্তরনিৰ্ম্মিত একটা পুত্তলিকাকে বার বার আলিঙ্গন করিতেছিলেন। (খ) কপোলদ্বারা কপুরের একট পুত্তলিকাকে ও বারংবার স্পর্শ করিতে ছিলেন। (গ) পাদপদ্মধারা গাঢ় চন্দনের একটা প্রতিমূৰ্ত্তি ক বাব বার আমর্শন করিতে ছিলেন। (ঘ) নিজের মুখখানাও স্তনের উপরে প্রতিবিম্বিত হয় কৌতুকবশতই যেন ফিরিয়া দেখিতে ছল । (ঙ) কর্ণের অলঙ্কার পল্লবটও গণ্ডদেশে নিজের প্রতিবিম্বপল্লবে সংলগ্ন হইরা উৎকণ্ঠার সহিতই যেন কাদম্বরীর গণ্ডে চুম্বন করিতেছিল। (চ) মুক্তমন্ত্র (R) निरुन्धन्तौम्। (R) षाश्वषन्तौम् । (३) स्वप्रतिविभ्वशाथिना ।