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পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১৩৫

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কৃষ্ণদ্বারিকা-মন্দিরলিপি।

तस्य तदनु तनु-जन्मा मुररिपु रिव शूद्रको भूतः॥(৭)
दूरोद्यात-शरत्-सुधानिधि-सुधा-कु[न्दाभिरामच्छवि-
च्छायै श्च्छन्न मभूद् यशो]भि रभितो यस्य [त्रिलोकी-तलम्]
कर्पूरै रिव पूरि[तं] मलय[ज]क्षो[दै] रिवालेपितं
क्षुब्ध-क्षीर-पयोधि-तुङ्गलहरी-लेहै रि[वा]प्ला-
वितं॥(৮)
सत्यं धर्म्म‑सुते स्थिरत्व मचले गाम्भीर्य्य मम्भोनिधौ
वह्वाश्चर्य्यगुणा मतिः सुरगुरौ तेजस्विता भास्वति।
[एते स]न्ति गुणाः पृथक् [पर]मु[द]ञ्चद्भि र्जिगीषा-रसै-
र्व्विश्वादित्य मजीजनत् सुत-
मसा वेभिः समस्तैः श्रितम्॥(৯)
य स्तापान्तकरः [सुधानिधि रिवापूर्णः कलानां गणै
र्य स्तुङ्गाभ्यु]दयाश्रितो रवि रिव प्रौढ़ प्रता[पो]दयः।
प्रत्यन्तःकरणाभिवाञ्छित-फलाजस्र-प्रदानश्रिभिः
श्लिष्टो
१० जङ्गम-कल्पवृक्ष इव यो जातः समस्तार्थिनाम्॥(১০)
[दोर्द्दण्डद्वय चण्डविक्रम-कशा-दिग्वाजि-शौर्य्याद्भुत-
क्रीड़ोन्मूलित-वारिवर्ग्ग-विपिनः प्रौढः प्रतापा(?)रुणः।
वार्य्यालीषु] यथाब्धि रापदि [त]था प्रव्य-
११ क्त-धैर्य्यक्रम:
किञ्च प्राकृत-सर्व्वगर्व्व-[विमुखः सम्पत्स्वनल्पास्वपि॥(১১)
श्रियान्यव्यासङ्गो विस]दृश-समाचार-विकलो
जनो मद्येनेव स्खलन सुपहासञ्च भजते।

^(৭)  আর্য্যা।

^(৮)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

^(৯)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

^(১০)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

^(১১)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

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