পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/৮৬

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লেখমালা।

शक्रः पुरोदिशि पति र्न दिगन्तरेषु
तत्रापि दैत्यपतिभि र्जित एव
[सद्य]ः
धर्म्मः कृत स्तदधिप स्त्वखिलासु दिक्षु
स्वामी मयेति विजहास बृहस्पतिं यः॥(২)
पत्नीच्छानाम तस्यासी दिच्छेवान्त-र्व्विवर्त्तिनी।
निसर्ग्ग-निर्म्मल-स्निग्धा कान्ति श्चन्द्र-
मसो यथा॥(৩)
विद्या-चतुष्टय-मुखाम्बु-रुहात्त-लक्ष्मा
नैसर्ग्गिकोत्तम-पदा-धरित-त्रिलोकः।
सूनु स्तयोः कमल-योनि रिव द्विजेशः
श्रीदर्भपाणि रिति नाम निज न्दधा-
नः॥(৪)
आरेवा-जनकान्मतङ्गज-मद-स्तिम्यच्छिला-संहते-
रागौरी-पितु-रीश्वरेन्दु-किरणैः पुष्यत् सितिम्नो गिरेः।
मार्त्तण्डास्तमयोदयारुण-जलादावारि-रा-
शि-द्वयात्
नीत्या यस्य भुवं चकार करदां श्रीदेवपालो नृपः॥(৫)
माद्यन्नाना-गजेन्द्र-स्रवदनवरतोद्दाम-दान-प्रवाहो-
न्मृष्ट-क्षोणी-विसर्पि-प्रबल-
घनरजः-सम्वृताशावकाशं।
दिक्‌चक्रायात-भूभृत्-परिकर-विसरद्वाहिनी-दुर्व्विलोक-
स्तस्थौ श्रीदेवपालो नृपति रवसरापेक्षया द्वारि
यस्य॥(৬)

^(২)  বসন্ততিলক। অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “কৃতস্তধিপ” পাঠ মুদ্রিত করিয়া গিয়াছেন।

^(৩)  অনুষ্টুভ্।

^(৪)  বসন্ততিলক।

^(৫)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত। “সংহতে” প্রস্তর লিপিতে “সঙ্ঘতে” রূপে উৎকীর্ণ রহিয়াছে।

^(৬)  স্রগ্ধরা। “সম্বৃতাশাবকাশং” প্রথমে “সম্বৃতাশাবিকাশং” রূপে উৎকীর্ণ হইয়া, পরে সংশোধিত হইয়াছিল; প্রস্তর-স্তম্ভে তাহার চিহ্ন দেখিতে পাওয়া যায়। (উইকিসংকলন টীকা: সুরেশচন্দ্র ভট্টাচার্য এই ই-কারযুক্ত পাঠটিই গ্রহণ করতে ইচ্ছুক।)

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