পাতা:প্রবাসী (ঊনত্রিংশ ভাগ, প্রথম খণ্ড).djvu/৫৭৬

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

znot

  • . . . . . .” & * . . ..* : "". ;

- - ... . . . . . " м o, . . . . . : '.' . स्प्लापू भस् (स्प्लेज्यान, चिीत ि शैिलि, '।ि पिशास्नानाशिक्! झर,{श्रेणीशि न। ५ांप्ौ {शशाम सांरातः ५१।। छाशि। ब्रtबा, षणैशtरी (शंtोग ना " "शक् ि(श राज!' "शरे गि१ त्। ५१२ बाशा कूझ शश " বড়মো স্বান প্রবল আপত্ত্বি প্রকাশ কৰিলি, “१, ऍी शिांख्न दश राग शाश्, १३ सूत्र १छून-* ठशक्र श शांति रगिलन, “शंशै क्लारा (शास् ** tरगभग झा(क्षांउ ( गि ऍास् शिा? করতে চেয়েছিলেন, পক্ষে এত ক্ষাধাজ্ঞা-" गान् नःि (* श्रेाः षी्रे इ१ीन शृiaार्गः नि। तैि षीतः ५ौि प्रीणां श्रः त्।ि ििजत्, "्रौ षांशं, {ज्ाशा दाराः ५र णानि কিনো যায়। তো উগো দা 兩門 ("ु, श्रुि छाँग ग (सिि, ( १ा ११ (नि। हिंौ काशगोशन शस ,ि काशा सिि। िितािशक श्रेषमनिु अिफ्नाअि ।ि श्रे|(ग। ীি ীিৰ মান করিনি, ষ্ট্রে আন বালজাত কোনাে গেলো বাটন এটা शन(ति१। षीतःि षांशंसतःि शैशॆ{। तिम्। तिग (क्षि।।ि ततः द्रावि। ६्रातः सा तिलै शह१, शार। अििti४ा र१िश्व का' ীিবন" দি আপনাছো এটা घल्लोकतं%ाति भन्छ' हिौ चशा शैठ कई रगिगन, " रश्स्,ि शैld। चांश िक्राउ शानशरु, (प्राप्त (*१७ शुर न।” & क्रि क् ि(१ ऍशा का ऐएि, एांश झरश्रेdनै tगगभग हरेक्ष औछ गगि। मशीन गश, शब्द श्रेण् ईशाएर राष्ट्रॉनिशनकगि 6,राशाताण, जैगौि aइी अॉि ऐसा अशा श ५ाप्नोताि इति।।१धाम्। जि श्;ि tी, श(१ीन षण्णाःऐतििष्ठ। 6ः इछि ति क्रिश्! सूर्ति गफ्ना इ! ७! चाँक्र, शानशांतःि (्रगिाशन स्, (नि षींशः षा ौि। বাংr বন্ধু গা আবার শোনালে, “তোমার বাবাড়ী এসেছেন না জ্ঞান" वैष्णै ५५ झरा शब्द ति शैति रगि, 'श, त्रुि $ा नौ र शा”, गांस्कर गा খে বড়ে গায় না। ভূ িদনৰে আন ংি। १, छाति इ(िशाझ छक्षण छ (शा शश शाश् सिी' रङ्ग ग्लिो ाि गोिि টেলিফোন ছাড়ি দিলেন। दूर इनका ऋग गर्न रीज़रे गि। शूरीtए गण षांठ१प्लाज् एांशstीक्ष्णष्ठ शंश शिक्षtगः शृष्ठ (शरेणश्न। ?र्शिौ क्लिग कगि, "५१न अंग (रांश् शक्, বাবা!" - दूष रगिन, "वश. १क इग्न छन (रों का गष्ठर। शॉग, (एांशाक भ१ि३शtषांशन शाः प्रण {१ीरश् " एांशंगा नि षाशं गङ्गां श्रांशांग् 州(*阿山 এ.া নি,"য়ে লিগোৱালী ঘা शाङ्गभूषा १{छ, तृ११९ऍा ७षम ५**' १** १षेस (नै रु।ि स्थिति ११!' दू शक शीर श्रेण् शीत शtरारेर गणि, शश १ झे ना न रहिर गणि। ि गिारे ििशगन ऍशा ठिा क् िकृता शैकिी शिन इति निरग्नःि इति। ऎौिि,dी४ ¢ी (शहे १ी न। झाप्त छ जूषश् मारे। रि िरगिल,"झिौ ऐणा8dइ(ि*६, ॐ धाशश। (ग गा" इति गी, शराठीक বোঝা যায় না।" मृश्र,ि "प्रशिक्त बौन शिक्षा शतए, शश। जां* कiि wां★ (कन दूषकांग शनेिौ* घ्रग्विणात्मना शांतःि।।" k .