পাতা:বিশ্বকোষ দ্বাদশ খণ্ড.djvu/৩৭২

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गकगरे गङ्गाभवाब पक्क" । ७रेमप्ठ भूषित्रण भब्रगङ्ग निकिब्र उभाद्र ७कमाज मठाडिआ, मछमएल्लब्र छात्र ~हेमप्ड गूंज, १rान, धन, पाश्न ७ ८षाशानिद्र अश#icनग्न जाँ१४कउ मांशे । ¢ठाझिछ द्रां ब्र! मृकण निक श्ट्रे८उ *:: ७८षर्ष८ब्रt२३१* 'cगरे प्रेश्वप्रहे श्रामि' ७हेझ* *ब्रtर्मश्वtब्रब्र भश्डि छोदtभ्रtद्र श्रद्रछनि བཝ[ཤཝཱ་རཱ་ প্রত্যভিজ্ঞ কহে । এই প্রত্যভিজ্ঞ স্বীকার করায় এই দর্শনের নাম প্রত্যভিজ্ঞ • नर्वन श्हेब्रु८श् -५%ङ्गठि वाक्लिएक दामन क्tश्, ७रेक्र” পূৰ্ব্ব উপদিষ্ট ব্যক্তির খৰ্ব্বাকৃতি পুরুষ দৃষ্টিগোচর হইলে, “गोरु वामना' गरे अिरे वामन अिरेक' लान श्, *नद्रांद्रिक अछूडिद्र! हेशं८क थठjछिछ कtश्न । *tश ७ অনুমানাদার ঈশ্বরের স্বরূপ ও শক্তি জানিয়া সেই শক্তি औदग्निांtङ ७ अ|tछ् ।। ५हेङ्ग* छtनलt७ कनिष्ठ ”iग्निcण “न ७८वश्व८ब्र९िश्” ८ग्रहे छेईब्रहे आभि ७३क्रश्न छान श्य । ५३भcङ जैौ६tञ्चांद्र नद्विङ *द्रमांईtब्र ८उन माहे, ७३भ८ऊ পরমাত্মা স্বতঃপ্রকাশমান, অর্থাৎ পরমাত্ম। আপনিই প্রকাশ *ाहेtडtझन । ८षभन श्रtगlदनश्रय|१|ानि न शहैtन शृंश्স্থিত ঘটপটাদি বস্বর প্রকাশ হয় না, সেইরূপ পরমেশ্বরের প্রক্লাশে কোন কারণ অপেক্ষ করে না । তিনি সৰ্ব্বত্র সর্বদ। •¢यां*मॉन द्रश्ब्रिां८छ्नं ! कि खु ग५न ७*द! कj ॐ तृ* fद्रग्र! जञ्जिशlनेि द्रां ऊँ ५८तद्र ६ं स्रामःङ७ बItछ्, ५ऋ१ छरनग्न ठेमङ्ग इग्र, उथन भूfडांtरुग्न श्राविडंब श्हेtड थt८क ५ीद१ अभूि4यं७jष्टिअt छtा, ठ५न श्रtद्र ८याँन ?tग्राँअन 啦靴卒 硝计 - { প্রত্যভিজ্ঞ দেখ। ] রসেশ্বরদর্শন—পদার্থ নির্ণয়াংশে গ্রত্যভিজ্ঞ দর্শনের সহিত রসেশ্বর দর্শনের প্রায় ঐকমত্য আছে। প্রত্যভিজ্ঞ দর্শনে পাদপদার্থের বিষয় কোন স্থানে উল্লিখিত হয় না । এই দর্শনে উৎ বিশেষরূপে নির্দিষ্ট হইয়াছে এইমাত্র বিশেষ। ¢षगन मडाडिक्ष-अ*नर्दिशशेन मरुधब्रटक भद्रश्मश्वद्रकc१ मि८#* ७ य१ और यूा ७ श्रृंद्रभग्रांद्र श्रद्धा शैौकांद्र कब्रिग्नां थारुन । गरेक्रग ७रे '*नावगशैबा भश्चब्रहे भद्रrमत्रद्र এবং জীবাত্মাই পরমাত্মা এইরূপ স্বীকার করিতে পরাখুখ नरश्म । किरु १शं ब्रt প্রত্যভিজ্ঞ দর্শনাবলীদিগের স্বক८%ाण कब्रिड.७कभोज अडाडिआरे পরমপদ মুক্তির সাধন, এরূপ বিশ্বাস না করিয়া পর্যমুক্তির প্রাপক অন্ত এক পথ अवग१म कद्विघ्।। १:शन । श्t१ कश्न ८१, मूं वाखिनि%क य५भङ; ८लएश्च्न ट्रेश्र्व जलश्रन श्ङ्ग कब्जिाउ श्ब्र, छ९*८द्र कभ*? ¢याँ*ीडिrtभ कब्रिtउ कग्निष्ठ १५म सञ्ज्ञांcनां नग्न श्छ,, उ९कtन भूख्द्रिप्नब्रभाविडीव दब। पनि७ भछांड க [ :७१२ 1 ങ്കപ്പ দর্শনেও মুক্তির সাধন এক এক পথ প্রদর্শিত । এবং তত্ত্বং পথাবলম্বনেও পরমপদ মুক্তি পাইবার সভn ; आtए, ठाश रहेtण७ ये गकग १८५ cगाएकब्र यदूखि रोत পারে না। কিন্তু এই দর্শনে পারদ রসার 'tवारा ४श्{ गम्भावन कब्रिब्र कम*: cषाशांच्णांप्न निब्रड ररेत *{{ब्र! वाग्न, उiश्! श्हेtग *ब्रमकांक्रणिक "ब्रtमश्वब्र হইয়া পারিস্তোৰিক স্বরূপ সৰ্ব্বপ্রধান মুক্তিপদ গ্রাম क्tब्रन । ५धक भूभूक वाङिनिशtक यषबड: cारा न”ानन कब्रिएड श्छ,. उांश श्रीब्र दगिषांत्र भाव७क नरे। cनt९ब्र ६इर्दा गांधtनां*ांब्र गांब्रमब्रन बाउँौङ भाद्र (कन পদার্থ নাই, ঐ পারদরসম্বারা যে রূপ দেহের স্বৈর্ধ সম্পাn कब्रिtङ श्ब्र, श्रछtछ झर्लंcन हेशंग्र फे८झ५भांब७ नहै। ५३ म*tनग्न भ८ठ, *ांब्रनग्नम् घाँब्रt cनtश्द्र श्रीं ज*** कब्रिtण cमर गररुहे मूखि श्छ, ७३ भूखिएक औदरूि কছে। প্রথমতঃ এই • দেহ শ্বাসকাশাদি নানারোধে অtশ্রয়, বিনশ্বর, মুতরাং সমাধিকরণ-ক্লেশ-সহনে নিস্তা। অশক্ত, দ্বিতীয়তঃ বাল্যাবস্থায় ধীশক্তি জন্মে না, যেীবনাবস্থা १ि१ग्न द्रजांशांtन वाॐ श्हेब्र! *द्रकांtशद्र निभिख् अ१कग९ फ़ि द कब्रिtङ &टूद्धि इग्न न! ७१९ दूकाँ१शां★ विtररु*लि থাকেন, তৎপরেই দেহপতন হইয়া যায় ; সুতরাং এই দে{ে সমাধি নিম্পন্ন হইতে পারে না, এজন্স প্রথমতঃ পাঞ্জা दाङ्ग दिा ८लश्। नृष्’ालन कब्रि८ङ झ्द्र, उश्। ह३८शहे अिभ4: cवाश्राडागानिदाद्रा भद्रभडrयत्र ऋर्डि श्रेबाज नष्ठारन। তন্নিমিত্তই এই দর্শনে দেছস্থৈর্ধ্যসাধনপথ প্রদর্শিত হইয়াছে। બરે পারদরস সামান্ত ধাতু নহে, কারণ মহাদেব পখী १ग्रः बलिष्ठंध्न ८१ ‘१|ब्राङ्गण आक्षत्र चक्रं, दॆशं शागाः । প্রত্যঙ্গ হইত্তে উৎপন্ন হইয়াছে । এই পারদ সংসােররূপ * দ্রের যন্ত্রণানিবৃত্তি স্বরূপ । পার প্রদান করে বলিয়া:পার" ७हे नाभ श्ब्रtछ् । श्रीब्रम श्रांभांद्र वैौज ७द१ अवक (*** वैौछ ; ५हे छूहे शैौ८णद्र दर्थविभरिन भिणन ग****** भाविtन शृङ्गा ७ नब्रिजा शब्लभा ७ककरण पूौइड " भाद्रन नाना अकाद्र । उअ५ ७क ७क ***** ** ७कन्नै अनश्ाङ्ग१ ७१ श्रोटङ् । बरु 'ब्रिनदी अडिनखि ५वर मूड भाद्रमदात्र जीविड इ७इ शय रेंड"" ७कमांज लाब्रवरे श{, अंध, काम ७ cभाथ भरे દર્દી अज्ञान'कन्न। भार्बन वाडोड ८क्रष्द्र निडाड" डभाब्राउब्र नाहे ७२५ खेशज मनन, ~*न, ड*", " भूथन ७ मांtन नकन अडोडे निक् िश्ब ।। ***** નાના ब्रन अ८गंभ $ख़म बनिङ्गाँ शत्र नांश ऋगचंद्र । हें६:* ಕ್