পাতা:বিশ্বকোষ ষষ্ঠ খণ্ড.djvu/২১৬

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

इँीनविधि [ २se ] চাদবিবি नरेcणम, छिनि भंभूनिम्न थे शांनि७ अषजण थे ८षांब्रिविष्टक इग्निक्रांग्र नियूङ कब्रिtणन ५द१ cनइन पैं ७ *ाश्ञांशैौटक ब्राजाङ्गक्रtर्थ श्रांस्वाम कब्रिह्णन । cनश्ण पॅ नांठशजांब्र ६नछनए ब्रॉबिकां८ण श्रांकबननम्र ब्रांtछr $*हिङ हहै८णम, नर्थिभरथT মোগল শিবির দেখিতে পাইর অবিলম্বে জাকমণ করিলেন । ४ गम८ब्र थांनषांनारमग्न अशैौनश् श्रामक नछ दिमहे शहेण । ७ हेक्रt* *थ नद्रिकांब्र कब्रिब्र! cमश्न पॅ नदैगरछ छूर्णम८षा छैनंहिङ इहे८णन । भtश्ञांलौ cमौणउ र्थः ८णानैौ-*ब्रिऽांनिष्ठ cमांशंगटैगtछब्र निकल्ले कठक नब्राजिष्ठ श्म ; cमांशष्णब्र उँहोम्न नाउणज्र नछएक कोब्रिा cकरण । विछोभूब्रग्नोछ taहै नश्यांन नाहेब्रt cषांख ८नांtश्नर्थाब्र गहिङ अँफ़ि* हांखांब्र अथारब्रांशै भाइकूशीडिबू८थ भा#ाहेब्रा निtणन । विtननैौद्र इरष्ठ शहेtठ ब्रांबाब्रक्र कब्रिदांब्र अछ भजग्डा छूजिब्रो गिब्र भिop|भक्षू, भाझनभाइ ७ cप्रथ्णान् शै। अििनग्नt cनांtइगर्थेब्र नश्उि cयां★ मिशन ।। ७हे नभरग्न शग्रमब्रांबांन श्रेष्ठ cभइनिकूणैौ. प्रणङारमञ्च अशैौन इद्रशजांब्र cभांलकू७1 अश्वांtब्रांशै। भांश्झरशै फे*श्ठि इहेण । बूद्रान आहे भशूर्ति मिणन नश्वान ७निर्णन । cमांशनऎनछ भtथा यूरुनडा दगिन, हिब्र इहेण যে শত্রুরা দুৰ্গরক্ষার একটা বন্দোবস্ত করিতে না করিতে ठूtश्रद्र ७क अ१* श्रदश्न कब्रिtउ शहेtद । श्रझनेिन भ८थाहे দুর্গের একদিকে পাচটী সুড়ঙ্গ কাট হইল, যেদিকে মোগল দলবল থাকিবে সেইদিক ছাড় সুড়ঙ্গের মধ্যে আর সকল দিকেই বারুদ পুরির চূণ স্বরকি ও পাথর দিয়া গাথিয়া দেওয়া হুইল । ( পরদিন ১৫৯৬ খৃষ্টাব্দে ২ •এ ফেব্রুয়ারী তারিখে ) কুড়ঙ্গ কয়টাতে আগুন দিবtয় কথা ছিল । ब्राणि कttण थाछा भूश्यन्न भैं निग्नtछौ ङांदौ विभtन द्र यथ छमाहेग्ना निष्णन । छैनदिवि ड९क५९ नगवण शहे ब्रा श्रङ्गन भूजिtड गाशिtणन । निtनग्न cदगtग्र ङिनि छ्हे? সুড়ঙ্গ নষ্ট করিলেন, সৰ্ব্ব বৃহৎ মুড়ঙ্গ হইতে সৈপ্তগণ মালमन्गा दाश्ब्रि कब्रिग्रt cझगि८ङश्णि, cमहे नभcग्र भूब्रांन उtश्ttड फधभिलाँन कब्रिtठ झां८** कब्रिह्लन । पञप्रिं नेि व1भांक ५फूभनछेकांशैौ*ण श्रtनष्कहे विमठे शहेण थद१ প্রাচীরের অনেকট পড়িয়া গেল । এই সময়ে অনেক প্রধান cषांक ठू*f झाक्लिझा •णांझन कब्रिtड डनाङ इहेश । Éानविदि দেখিলেন আর নিস্তার নাই। তিনি মুখে ঢাকা দিয়া বৰ্ম্মচৰ্ম্মে পরিবৃত হইয়া মুক্ত অসিহস্তে সেই ভগ্ন প্রাচীর রক্ষা করিবার জন্তু অগ্রসর হইলেন । ভীরু যোদ্ধাগণ সেই বীরমহিলার অসম সাহস অবলোকন করিয়া অতি লজ্জিত ভাবে ॐाएांद्र अछूदउँौं श्हे८णन । cनहे छभ थाईौद्र रुईcङ tथक }, WI & 8 कांtण घूषणषांtद्र अब्रिशूटेि श्हेtठ शांशिण ; जग्रारज्ञब्र डौवन *च#ान निद्य७ण मांछश्म कद्विज । श्रृंठ शंठ ८भाँशनरीौब्र সেই ভগ্ন প্রাচীরের নিকট প্রাণত্যাগ করিল । রাশি রাশি यूठानहरु अफ़थाहे °ग्निभूर्ण रुहेण ! उांशग्न अtण श्रांज थङ्गठहै শোণিতস্রোত বহিতে লাগিল ! আজি শত্রু মিত্ৰ সকলেই cनहे बैौब्रबालांब्र अमांकूवैौ ८ठछशिष्ठीव्र यtथ8 *ब्रिहब्र *ाहे८णन । कि झूर्णभएथा कि *छद्र निदि८व्र नक८णब्रहे भूष आज $ानबिबि ७ Éानश्णङांनात्र शषाडि श्राम । ब्राबि झहे थश्रब्रव्र गमtग्न बूक ७कहूँ थॉभिन्न श्रांनिब्रां८इ, किरू छैानब्रागैब्र बिथांय माहे । ङिनि झूर्शनश्ऋांtद्र दारठ ! ●फूाष इहेष्ठ मा श्रङ उग्रंशां८म ९॥७ शङ थtफ़ैौद्र উঠিয়া গেল । ५निएक झूtगै ब्रनघ कमिब्रा श्रांजिtठ झिण । कँtनविदि विनिश्itन श्श्रेगश् १णश्चाग्नेिश्ट्रः शैब चालिनि अच। १छ् লিখিলেন। ঘটনাক্রমে সেই পত্র শত্রুর হস্তে পড়িল ; भूब्रांनe *ब "फ़िब्रां निर्किंडे हांtन श्रां%ाहेब्रा निtगन ७ cयोगंज°फ़ौम्न ७कलण नष्ट्र स्नानाहेताब्र छक्क श्रृंक्क निर्थिप्लम । थ्वभकौब्र न छ११ मानिकप्त७ *ांझीं क्ल श्हे ब्रां पञांश्रीमनश८व्र উপস্থিত হইল । মোগলশিবিরেও রসদের অভাব হইয়াছিল, ७श्वन न्डन ट्रेनछनप्णद्र आश्रमप्न ८माभtणब्रा बङ्गहे क्रछे পড়িল । অনেক ভাবিয়া চিন্তিয় মুরাদ চাদবিবিকে বলিয়া পাঠাইলেন, যদি বেরার প্রদেশ ছাড়িয়া দেওয়া হয়, তাহা হইলে তিনি সত্বরই অক্ষদনগর পরিত্যাগ করিয়া যাইবেন । চাদবিবি প্রথমে ইতস্তত করিলেন ; শেষে ভাবিয়া দেখিলেন যে যদি তাহীর পক্ষীয় সৈন্থগণ মোগলের নিকট अब्राजिङ श्य, उँाशब्र भाननब्रम ८कोथाइ थाकिम्ब ? ७हे ভাবিয়া তিনি বাহাদুরশাহের নামে সনদপত্রে সহি করি८लन । cमtभंगऐनना ८लोणङtवान निद्रां कशिग्री श्रानिश । তিন দিন পরে বিদ হইতে দলবল আসিয়া পৌছিল । মিঞা भक्षू डादिब्रा श्णिन भाकलणाश्एकहे ब्राजनशान cम७ग्रा হইবে, কিন্তু প্রধান প্রধান আমীরগণ মিঞার প্রস্তাবে সম্মত इहेप्शन मा । cनश्त्र थै। दाशङ्द्र शांश्८क श्रानिवांद्र खाछ চাবপাকুর্গে একদল সৈন্য পাঠাইলেন । চাদবিবি ও ইব্রাহিম অtদিলশাহকে আহ্মদনগরের গৃহবিবাদ মিটাই বার জন্য পত্র । লিখিলেন । বিজাপুররাজ চাদবিবিকে মাতার ন্যায় ভক্তি করিতেন, তিনি অবিলম্বে চারিহাজার সৈন্য পাঠাইলেন এবং মিঞা মধুকে আক্ষদশাছের আশা পরিত্যাগ করিয়া ৰিজাপুরে আলিবার জন্য পত্র লিখিলেন । তাহার আদেশ মত মিঞা মঞ্চ বিজাপুরে উপস্থিত হইলেন, এখানে তিনি