পাতা:রাজা রামমোহন রায়-প্রণীত গ্রন্থাবলী.pdf/৪২৬

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... ( o ) •. श्रों तत सत । जेो सव ब्राह्मण क्षांङ्गवेदका श्रध्ययन नहीं करते सेा सव ब्रार्थिहैं མ་གང་པ་ جام جه • ‘ अथात् धब्राह्मणहैं यह प्रमाण करगीकी*इच्झा करके ब्राद्मगा धर्म.. अरायण श्रोसत्रद्मएँर्यशाखी जीने जेो यत्र साङ्गवेदाध्ययनुहोन' अनेक حه حمله حه همه ایم సిw يب * &~ پنجابه इसुदेशके गाड़ब्राह्मगाँीके सङ्गीय पठायझें उसमं दखा जा उन्होने लिखाई “वेदाध्ययन हीन मनृव्यंकेा खर्ग कॆार मेोच्त हाने प्राक्ता नही चैोर जिसने ब्रदर्वा यध्ययनकियाहैं उसईका केवल ब्रह्मविद्यामें షి. పి. حه حمله. xہ۔۔۔ ہمہ م * अधिकारह अॅोर ब्रच्झच्चान उत्पन्न होनके प्रवे वेदात अंtर स्मृत्युक्त कर्म अवश्य कर्त्तव्यहै, यह सव वाक्य ये अब्राह्मणत्वके प्रमाण करणेमें - - یہ۔ ه. * :M, संबंध रखते नही विनेोके द्वारा यह प्रमाण करणेकी इच्झा करें हैं, चॆ ब्रझयच् द वयझ बाद् िवगां श्रम कर्मके यनुष्ठान विना ब्रह्मिज्ञान हा प्राङ्ता नाही. यह जानके हम सव उत्तर देते हैं : ब्रह्मविद्यैके R r. ఫ్ఫి, 曼像 प्रशाप्राके निमित्त वर्णाश्रमके कमंका अनुरानकर्त्तव्यहं यह सत्य, जिसलिये वृह वेदादि शाखेंीके सहित विरुद्ध नईी, हम सबही यह अङ्गी - き *S. --> • { कार करते हैं परन्तुं यह सर्वथा अमान्य हैं जैो वर्णाश्रम कर्मके अनुशान विना ब्रह्मघ्नानको उत्पत्ति होती नही जिसलिये भगवान् वेदव्यास e s *r- *ياد సి به वर्णाश्रमकमेरहित मनुष्यैोकूाभी ब्रह्मविद्यामें यधिकारह यह देr खत्रमें लिखे हें से यही दे । स्वच । “यन्तराचाग्नि तु तदूठेः । अपि च

  • ష్ని N. هي حمه o * * * समयेते, । उधार इन्ही दा खुचाका व्यथ भगवान् भाव्यकार करतें हं । जे “अभिईन मनुष्य सब आरु द्रव्थादि संयत्तिरहित जेा मनुष्य

$ جع ヘ や حه सव, जिनके किसी वर्णाश्रमके कमेका धनुष्ठान नही रस प्रकार 3. *N - - धनाश्रमि मनुष्यंका ब्रह्मविद्यामें अधिकारहैं किम्बा नही, इसी संदहमें यहिशा वूझा जाताई यही जेो श्राश्रमकर्म रहित मनुष्यका ബ് స్ని विद्यामें अधिकार नही, जिस्लिये विद्याके प्रति श्राश्रम कर्म कारणहै चैर इन सव मनुष्येंकेिा थाश्रमृकर्मके सम्भावना नही, इसी पूर्वपचमें