পাতা:বিশ্বকোষ দ্বাদশ খণ্ড.djvu/৫৭৭

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• ौक । ৫৭৯ ] मैौक अश्, कनिई-गtश्नम्न ७ श्रृंझणtक्रङ्ग निषे श्रेtउ भब्रुअंश्।" कब्रिएउँ भाहे । 響 “निफूईश३ म शृंड्रौदृ९ उथ गाउभिश्छ छ । cनांझद्रश कनिर्छछ &वब्रि**कथिउछ s ॥” (८षाणिनौठझ ) "স্বামী পত্নীকে, পিতা পুত্ৰকল্পকে ও ভ্রাতা প্রাতাকে . দীক্ষিত করিতে পারবেন না। পত্তি সিদ্ধমন্ত্র ইলে পীকে দীক্ষিত করিতে পারেন। § “म भङ्गौ गौडिं न निष्ठा नौकाग्रं श्डाः । মপুত্রঞ্চ তথা স্নাত ভ্রাতরং ন চ দীক্ষংে। সিদ্ধময়ে যদি পতিবা পত্নীং স দীক্ষয়েং - (কুন্ত্রযামল) शडिनिभद्र निकल्ले रुहेरळ, निउ ७ शनबाणैौद्र बिकल्ले হইতে এবং বিক্তিাশ্রমী অর্থাৎ সংসারত্যাগীর নিকট হইতে औक 4श्१ कब्रिहण cगहे मैौक्र कगाभंमांग्निर्कः रुद्र मां । “ধতেীক্ষা পিছুীক্ষা দীক্ষা চ বসবাসিনঃ। বিবিজ্ঞাশ্রমিণাং দীক্ষা ন লা কল্যাণদায়িকাঃ " • * ( গণেশবিমৰ্ষিণী ) ७हे नकल मिtशक्ष रुघ्नन थांकांद्र हेशंtशग्न निरुग्ने श्रेष्ठ शैौक्र óश्१ निषिक श्रें★ांtझ, किलु हेक्ष्! निtझ७द्र तिवद्भ জানিতে হইবে অর্থাৎ ঐ সকল নিষিদ্ধ ব্যক্তিগণ যদি সিদ্ধ रुन, लांश श्रेंtण उॉक्षांप्लव्र निकछे मौभ{&श्१ फालुङ शहेtर না, বরং কল্যাণদায়িকা হইবে । যেহেতু শক্রিযামলে ‘সিদ্ধমন্ত্ৰে ন কুৰ্ম্মতি’ এবং “যদি ভাগ্যবশেনৈব সিদ্ধবিস্তাং লম্ভেং প্রিয়ে। তবে তাস্তু দীক্ষেত ত্যক্ত, গুরবিচারণং।” (সিদ্ধযামল ) যদি তাগাছুসারে সিদ্ধবিদ্যা লাভ হয়, কাহা হইলে सक्रक्रिाप्त नौ कब्रिग्न नौक्र अश्१ कब्रिtरु । गरि (कश् यमान'ब अशानड cश्शू मिलाब निकई सsअश्म क्छ, छांश' श्हेtन शंtग्न @ांग्रकिड़ रुद्विग्ना शूनब्रां★ लीझ ॐश्१ कप्लेिtङ इट्रेद । - 橡 - "গ্রমাদাচ্চ তথাঞ্জানাৎ পিতুর্দীক্ষাং সমাচরন। প্রস্থিশ্চিত্তং তত: কৃত্ব পুনন্দীক্ষাং সমাচরেং ” (গণেশমি৭ি) ७रें इ:ग भिक्लभए ड*नक्रम आनिरङ श्हें भ४९ ৰঙামং প্রভৃতি পূৰ্ব্বে যে ৰে নিষিদ্ধ .झ्हेग्नt८छ्, कॉछttfद्र निकहे श्रेड बs $श्य কৰুিলে প্রায়শ্চিত করিং পুনরায় দীক্ষা গ্রহণ করিতে হুইবে । n এইরূপ দীক্ষা গ্রহণ করিলে, তাছার প্রায়শ্চিত্ত **शंत्रांबू जांविर्द्धौ छ* । o "ननगाश्व प्रtश्वन मर्सिकत्रश्नांमैिनौ ” (*श्व) ऋजघ्नविष्ण झउिब्र निकझेe ईौऋ ब्रहेषांइ दि१न झांtइ, wo 飘 ह्न ஐ किरू ५ जरtक गिषिड भाrइ,--ठौषt5ांब्रषूड, शजडग्नदिनt. রদ, জ্ঞানী, সংযতেক্রিয় ও নিত্য কাৰ্য্যতৎপর কেবল এরূপ यडिहरु प्लङ्ग कब्रिाज्र ग्यान्न गाग्न । भिज्राप्त भङ्ग निबैौर्षा अर्थ९ *िठांत्र निकों जैौकिङ रुहेtन cमहे शहदांबा ज*शूलानि कब्रिtग ८कन कtणद्र (४क/ाँषं कब्र शाहेtङ *ttब मां । किखु ट्रेश्वरु ७ श्वास भत्र विश्रङ्ग ८रुन्न ८मारु नाहे । 'छिद्र निकले औझिड इहेश्व म' यिहै बहन ८कोण-ोकाभद्र अर्ष९ ¢कोशाकांद्र विहिड शैक्रांtउ भिडाब्र निकt?७ अझ &श्५ कब्रिाड श्रृंttद्र । ठनुिव्र गरूँछ नtह । काँक्र६ ¢शां*िोंनौङtङ्ग भंख्ञाॉलेि विा शन्न कख्रिब्राहे तिब्बाँधि हहेtड़ शैौक्र भिषिक इहेग्रांtझ । अर्थदा ‘४*tव भाcख न झकृठि' 'uहे प्रांtनद्र भास्त्र भन्नै प्रुबगार्ज डब्राििदशावित्र खिण्ड रहेप्र अथ९ उब्रिनिद्र प्रज भिर्बनि रहेtड अश्न कब्रिएल भाद्र बाग्न ! भ९छराख् अिहेक्रो शिथिछ श्राद्रङ्ग,-छि ८ञाई भूखएक नैौक्रिऊ कब्रिाङ १ittद्रग्न, हेक्ष्ॉइफ ८कांम ८मांश् माहे । शक्र १ कानै zकृछि भशजैौrर्ष अब व्ठ श्री अश्मक:ग পিক্সাfদ হইতে মন্ত্রগ্রন্থণে কোন দোষ বিচার করিবে না । স্বপ্নলব্ধ ও গ্রী প্রদত্ত মন্ত্র ১ধুনৰ্ব্বার সংস্কার করিলেই শুদ্ধ হয়। স্ত্রীলোকের নিকট দীক্ষা গ্রহণ করিতে ইলে'তাহার এই সকল গুণ থাকা অবিশু ক,-সাধী, সদাচারতৎপর, গুরুর প্রতি ভক্তিশীল, জিতেন্দ্রিয়া, সৰ্ব্বমন্ত্রার্থতত্ত্বজ্ঞা, সুশীল ও পূজাদি কার্য্যে অনুরক্তা অর্থাৎ এই সকল গুণসম্পন্ন স্ত্রীর भिकझे मैौ# &श्१' कब्र शाहेtउ श्रृंi८ग्न, दिक्षु दि१व 4हे नकल ९१मग्भद्रा इ३:न७ ठाशद्र निक इ३:ल'ौगt &श्न করিবে না। স্ত্রীগুরুর নিকট দীক্ষা গ্রহণে গুড় ফল হয় । विtभव धाडांद्र निक औभिङ श्रेन अझे ख१ झग ग़ाउ कुछ । इनि भाउ छांशद्र खे*ानिउ মৰু প্ৰদান করেন, তাহ रुहेtग अठे ७* झण, नाक९ तुछ झग । cकांन ¢कांन তত্ত্ববিদ বলেন,-সিদ্ধমন্ত্র গ্রহণে শুরু বিচার নাই। বিধৰ शैौब भइ निदान भषिकांद्र नाहे, रेशद्र अ#िथनप्र भईक्रभ* লিখিত আছে, বিধবা স্ত্রী পুত্রের অনুজ্ঞা লইয়া, কন্স भिउाब्र आख ७ नश्वा शैौ पाशैब्र, आलाश्नांtद्र श्लोक श्रि, बंts९ देशrमग्न पाउछा माहे। .अर्छदउँौ कौब्र निकाः शैक áश्न cनावावर नtश् ;: रुिढ मत्रम म*ि १ॐदउँी जैौब्र निक शैक्रिठ श्हेtग ८द्रोद्रद नद्रक इहेग्ना थाएक् । भज्ञ यप्ति प्रश्न गांउ रुद्र, उांश इहेtण थै भङ्ग नषू९ग्नद्र निरुझे इहे:उ श्रूनब्राह अक्ष्ण कब्रिहद । पनि ग१४* णांठ नां श्ब्र, छांश इश्रण छगभूर्भ कथtन গুরুর প্রাণপ্রতিষ্ঠা করিয়া ৰটপত্রে কুঙ্কুম দিয়া মন্ত্র লিখি উক্ত কলসে ঐ পত্র