পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/২১

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का एक ही पहलू उनके सामने रखा गया है और यह बात भी नहीं कि वह भी सब समय कोई उनका सबसे महत् और सबसे श्रेष्ठ पहलू ही हो। यह बात केवल विदेशी पाठकों पर ही लागू नहीं होती, बल्कि बंगाल के बाहर के भारतीय पाठकों पर भी लागू होती है। दो अर्थों में यह एक राष्ट्रीय दुर्भाग्य है। एक तो इस अर्थ में कि भारतवर्ष के बहुसंख्यक लोग भारतवर्ष के सबसे बड़े कवि की कुछ सर्वोत्कृष्ट रचनाओं से अपरिचित ही रह गए हैं और दूसरे इस अर्थ में कि भारतवर्ष की दृष्टि का प्रसार कहाँ तक है, इसे समझने और जानने का अवसर बाहर की दुनिया को नहीं मिला है। इसलिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय हित के लिए रवीन्द्रनाथ की रचनाओं का एक नया संग्रह प्रस्तुत किया जाय। साहित्य अकादेमी ने इस चुनौती को स्वीकार किया है और वह रवीन्द्रनाथ की चुनी हुई कविताओं, गीतों, नाटकों, उपन्यासों, कहानियों और निबंधों के आठ अलग-अलग संग्रह निकालने जा रही है। सभी भारतीय भाषाओं के पाठकों को रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा के शौर्य, पैनेपन और विस्तार का सुन्दर-सा ज्ञान करा देना उनका पहला ध्येय होगा। उनका एक दूसरा अतिरिक्त ध्येय होगा कि वे संसार के दूसरे देशों के पाठकों को वही उपहार भेंट करेंगे।

 १०१ कविताओं का यह संग्रह प्रस्तावित चुनी हुई रचनाओं की पहली किस्त है। ये कविताएँ पहले तो देवनागरी अक्षरों में प्रकाशित की जा रही है और बाद में भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनूदित होंगी। और उसके बाद वे संसार की प्रमुख भाषाओं में भी अनूदित हो सकती हैं। उत्तर भारत की सभी भाषाओं में एक ऐसा निकट का संबंध है कि वे पाठक भी, जो बंगला नहीं जानते—जिस भाषा में रवीन्द्रनाथ ने लिखा था—अगर किसी कविता को पढ़ सकें तो वे उसे समझ ले सकते हैं। यह निकट का संबंध केवल भाषा में ही नहीं है, बल्कि समान परंपरा, समान अनुभूति, समान कथा-प्रसंग से उत्पन्न भावावेगों और मनोभावों में भी है। दक्षिण भारत की भाषाओं से अलबत्ता मौखिक रूप में निस्सन्देह बहुत