পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/২২

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बड़ा अन्तर है, लेकिन आवेग, अनुभूति और परंपरा के क्षेत्र में दोनों का संबंध अत्यन्त घनिष्ठ है। अनुवादों की सहायता से प्रायः सभी भारतीय भाषाओं के पाठक देवनागरी अक्षरों में प्रकाशित रवीन्द्रनाथको मौलिक रचनाओं के सौन्दर्य और अभिव्यंजना को ठीक-ठीक परखने में समर्थ हो सकेंगे। बाद में जब इन कविताओं का अनुवाद संसार की अन्य भाषाओं में होगा, तब, ऐसी आशा की जा सकती है कि, अब तक के संग्रहों और अनुवादों से वे अधिक प्रतिनिधि-मूलक होंगी और रवीन्द्रनाथ को कुछ अधिक समझने में सहायक सिद्ध होंगी।

 १०१ की संख्या कुछ ख़ास पवित्र नहीं है। अगर कोई पाठक यह कहे कि यह संख्या दुगुनी भी कर दी जाय तो इसमें केवल उत्कृष्ट रचनाएँ ही रहेंगी, तो कम-से-कम मैं उस वक्तव्य को ग़लत नहीं मानूंगा। और मैं इस आक्षेप को भी स्वीकार कर लूंगा कि उस संग्रह में कुछ ऐसी कविताएँ बाद में पड़ गई हैं जो संग्रह की कविताओं से और भी अधिक अच्छी नहीं तो कम-से-कम उन-जैसी अच्छी तो हैं ही। इसमें मतभेद की गुंजाइश बराबर बनी रहेगी कि किसी महान कवि की कौन-सी एक सौ या दो सौ कविताएँ उत्कृष्ट हैं। वैसे इस संग्रह के बारे में दो बातों का दावा मैं अवश्य करूँगा। इसमें कोई भी ऐसी कविता नहीं है जो प्रथम कोटि की न हो। और यह भी कि संग्रह प्रतिनिधि-मूलक है और इसमें इस बात का ध्यान रखा गया है कि रवीन्द्रनाथ की भिन्न भिन्न शैलियों और मनोदशाओं का परिचय देने वाली कुछ कविताएं नमूने के तौर पर आ जायँ। लेकिन एक बात की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि गीत जान-बूझ-कर इस संग्रह से छोड़ दिए गए हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि रवीन्द्रनाथ के संगीत-परक गीतों में उनके कुछ उत्कृष्ट काव्य भी हैं, लेकिन गीतों का एक संग्रह अलग से निकालने की योजना है, इसलिए इस संग्रह में उन्हें छोड़ देना ही ठीक समझा गया है।

 इस संग्रह का प्रारंभ 'निर्झरेर स्वप्नभंग' से हुआ है जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं। रवीन्द्रनाथ ने इस कविता को अपनी ही काव्य-