পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৩৯

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११८ कादम्बरी पूर्वभागे केवलमभिभूयमान किञ्चिदुपजाताभ्या पचाभ्यामौषत्क्वतावष्टभो ( ) लुठ त्रितख्तत छातान्त सुख कुहरादिव विनिगतमात्मान मन्धमान (च) नातिदूरवत्ति न, शवरसुन्दरा कणपूर रचनोपयुम्ला पल्लवस्य सङ्घर्षण पट नोल-चक्काययोपइसत द्रुव गदाधर देह च्छविम्, (२) अच्छ्रे कालिन्दी-जल चक्कैदैरिव विरचितच्छ्दस्य, वनकरिमदीपसित (२) किसलयस्य, विन्ध्याटवी केशपाश श्रियमुद्दहत ? (४) दिवाप्यन्धकारित-शाखान्तरस्ध, अप्रविष्ट-सूर्रय किरणमतिगइनमपरस्यव पितुरुत्सङ्गमतिमष्ठतस्तमालविटपिनो मूलदेशमविग्रम (छ)। सइ भवतौति तेन जन्मसाइभुवा भाजन्प्रसिडन । भभिभूयमान भाथशौक्रियमाण । ईषत्क्वतावटभ किखि दिहिताश्रय भूतले अल्पमस्प निभर कृत्वैत्यथ इतस्तती लुठन भूमौ निपतन्। कुत तमुखकुइरात् यमवटन बिंबरात् विनिगैतमिव । चत्र क्रियॆीत्। चालङ्कार । (क) नातौति । यवरसुन्दरीणां कण पूररचनायां कर्णालद्धारनिर्माणे उपयुक्ता पल्लवा यस्य तस्य । सङ्ष ण पटवत् वलरामवसनवत् नौलच्छायया नौलकान्ता गदाधरदैइच्छवि छ यिख दैइकातिम् उपहसत इव ह्यितम्। अत्र लुप्तीपमाक्रियोत्यिचयीर्रकाश्रयालुप्रवेशरूप सइर । अच्छ निर्मूल कालिन्दीजलच्छंदै यमुनाजलखण्ड रिव विरचितान्य्दा पत्राणि यख तस्य उभयोरपि नौलत्वादिति भाव । भवापि जात्युत्म घाइत्यनुप्रासयोरकाश्रयातु प्रवेशकप सङ्कर । वनकरिमद व न्यइतिदानजल उपसिज्ञानि किसलथागि पल्लवानि यश तस्य । विश्वयाटब्या केशपागषिय नीलत्वात् कुन्तलकलापर्शीभाम् उद्दइती धारयत । भत्र थियभिव प्रियमिति साइश्यादै पादसम्भवइस्तु सम्वन्धा निदण नालड़ार । दिवापि दिनेsपि अन्धकारितानि रविकराप्रवेशात् सञ्चातान्धकाराणि शाखान्तराशि शाखानामभ्यन्तरमागा यस्य तस्य यतिमहत तमालविटपिन तमालष्ठचस्य अपरख पितुरुत्सङ्ग क्रीड़निव अभयद खात् पूर्णाच्छादकत्वाद्य ति भाव । यत्र जात्युत्ग्र घालढार । अतिगइन दुथ वशम्। বর্ণ বৃক্ষ হইতে সদ্যোনিপতিত পত্রের সমান ছিল বলিয়া কেহই আমাকে স্পষ্টরূপে দেখিতে পাইয়াছিল না। সেই ই প্রাণপরিত্যাগেব উপযুক্ত সময় হইলেও বালক বলিয়া তদ্ভিয়কালভাবী স্নেহ যে কি পদার্থ তাহা বুঝিতে পারিয়ছিলাম না কেবল জন্মসময় হইতে উৎপন্ন ভয়ে অভিভূত হইতেছিলাম , আর অল্পমাত্র জাত পক্ষযুগলদ্বারা ভূতলে অল্প অল্প নির্ভর করিয়া ইতস্তত লুষ্ঠিত হইতে হ তে চলিতেছিলাম এব যমের মুখবিবর হইতে যেন নির্গত হইম্বাছি বলিয়া আপনাকে মনে করিতেছিলাম। (ছ) সেই তমালবৃক্ষের পল্লবগুলি শবর রমণীগণের কর্ণাভরণ কবিবার উপযুক্ত ছিল, সেই বৃক্ষ বলরামের বস্ত্রেব দ্যায় স্বকীয় নীল কান্তি দ্বারা কৃষ্ণেব দেহশোভাকে যেন উপহাস করিতেছিল যমুনার অল্প অল্প নিৰ্ম্মল জলদ্বারা যেন তাহার পত্রসমূহ নিৰ্ম্মাণ করা হইয়াছিল, বন্ত হস্তীর মদজলে তাহার পল্লবগুলি সিক্ত ছিল দিনের বেলাও তাহাব শাখাসমু হর অভ্যস্তরদেশ অন্ধকার ছিল, আর মুলস্থিত ষে (१) ईषत्क्कतगमनावष्टम्भ । (२) नैौलच्छायम् नैौखदलच्छायया नैौखया शयथा । गदाधरचक्कविम् (१) मदसखिख रिवीपसिप्त मदसखिखरिव ससिप्ता । (४) छइ हन्त ।