পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৩৬

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कथायाँ राजवाटीवण ना । ३१५ रणमिव प्रथम मध्यमीतम पुरुष विभशिास्यितानेकादेश कारकाख्यात समादान क्रिया-(१) व्यय प्रपश्च सुखितम्, (घ) उदधिमिव भयान्तं प्रविष्ट (२) खपचभूमिश्वत्-(२) सहस्रसडुलम्, (ङ) उषानिरुदसमागममिव चित्रलेखा-(४) मान पुरुषत्रेष्ठान चलेन सामथ्र्य ग परिपालितन्। अन्वत्र तु कुलक्रनेण तब शैयरीया स्वागतौ जातौं शूरौ वरौ भौमौ शत्र णां भयद्धरौ यौ पुरुषोत्तमबलौ श्रौक्कणबलरामौ ताभ्यां परिपालितम् । (घ) व्याकरणमिति । ब्याकरण शास्त्रभिव प्रथम मध्यमीशमतया या पुरुषविभक्ति अय सर्वोत्कृष्टग्रणतया प्रथम दानपावम् भय माध्यमिकगुणतया माध्यमिक दानपावम् भयचीतमगृणतया मध्यमत उत्तम दानपात्रम् इत्येव प्राथि जनविभाग तत्र विषयॆ खिता नियुता ये भनेके भादैणकारका इदमर्सी दौयताम् इत्यमाप्नाकर्तारी जनारत राख्याता निष्ट्रि प्टा या सम्प्रदानक्रिया सम्यक प्रकर्ष ए बितरणकार्याणि ताभियौँ व्ययप्रपी धनापगम बाष्ट्रश्च तेज सुखित धशखितया विद्यमानम् । धश्चव तु प्रथमपुरुषो मध्यमपुरुष उत्तमपुऽषश्व ति तिङ बषणालां प्रत्येकविकरय एककसज्जा विभज्ञाय सुपतिड कपा तासु ह्यिता अनेकै भादैया त्रि चत्वारशब्दयो स्त्रियाँ तिरुद्ध चतख्न इत्यादय इन्त व ध इत्यादयष कारकाणि कर्वादौनि भाख्यात तिडन्त पदम् सन्ग्रदान कारकविशेष झ षयीजनाभि प्रायादख पृथगुति क्रिया क्रियाप्रतिपादका भूप्रभृतय शब्दा भव्ययानि सदृश त्रिषु खिझेषु इत्याद्युक्तखचश्रानि खरादौळैि तेषां प्रपश्व'ग वितीरॆण सुयित सुप्रसिद्धम् । (ड) उदधिमिति । उदधि समुद्रमिव भयेन विपचराजभौत्या भन्त प्रविष्टानाम् भभ्यन्तरगतानां सपचाणां सघ्रायसतिाना भूमिश्वता राशा सहस्रोण बाहुख्र्थन सङ्गुल ब्याप्तम्। अन्यत्र तु भयेन इन्द्रकत्त कपचच्छ्रेदन भ न भन्त पविष्टानां सपषाणा पतत्रान्वितानां भूमिमृता म नाकादिपव ताना सइस्र ण सङ्ख व्याप्तम् । इन्द्रकत कपचच्छ न्नभयेन पचवन्त पव ता पुरा समुद्रमध्य पखा यता इति रामायणम् । (च) ऊषेति । ऊषा बाणराजकन्या अनिरुज़ औक्वष्णपौत्रस्तयी समागम सक खनमिव चित्रलेखाभिस्त तदा लैछ्यरचनाभि द ग्रु ता विचित्रा विविधा सकलत्रिभुवनस्य तइत्ति न पदाथ स्य भाकारा यअिन्। तत् । अन्यत्र तु चिबलेखया तदाख्यया ऊषासख्या दशिताशिवधित्वा ऊषाय प्रदर्शिता विचिवा विशिष्टाचत्रखरुपा सकलत्रिभुवनस्य समक्षत्रिजगद्दासिनी युवकसमृहस्य चाकारा यझिन् तम्। منہ سپہ اہمیت ہمن عنہم۔ পবিরক্ষিত হইয়াছিল সেই রাজবাটও তেমন কুলক্ৰমাগত বীব ও ভয়ঙ্কর পুরুষশ্রেষ্ঠগণের বcল পরিরক্ষিত হইত। (ঘ) ব্যাকরণশাস্ত্র যেমন প্রথমপুরুষ মধ্যমপুরুষ উত্তমপুরুষ, মুপ ও ডিঙ বিভক্তি, তিস্থ ও চতস্বপ্রভৃতি অনেক আদেশ, কৰ্ত্তাপ্রভৃতি কারক, পচতিপ্রভৃতি আখ্যাত সম্প্রদান কারক ভূপ্রভৃতি ধাতু এৰ অব্যয়পদের বিস্তারে সুপ্রসিদ্ধ আছে, সেই রাজবাটও তেমনি ইনি প্রথম দানের পাত্র ইনি মধ্যম দানের পাত্র এবং ইনি উত্তম দানের পাত্র এইরূপে প্রার্থিজনের বিভাগকাঁধ্যে নিযুক্ত অনেক আদেশকারী লোক, নির্দিষ্ট করিয়া দিলে যে দানকাৰ্য্য সম্পাদন হইত তাহার ব্যয়বহুল্যে যশস্বী বলিয়া প্রসিদ্ধ ছিল। (ঙ) সমুদ্র যেমন ইত্মকর্তৃক পক্ষচ্ছেদনের ভয়ে অভ্যন্তরপ্রবিষ্ট পক্ষসমন্বিত মৈনাকপ্রভৃতি পৰ্ব্বত সমূহে ব্যাপ্ত হইয়াছিল সেই রাজবাটাও তেমন বিপক্ষগণেব ভয়ে অভ্যস্তরপ্রবিষ্ট সহায়সম্পন্ন রাজগ।ে ব্যাপ্ত ছিল। (চ) উষা ও অনিরুদ্ধের মিলনে যেমন উষার সখী চিত্ৰলেখা - (१) सन्ध्रदानापादन । (२) भयात्प्रविष्ट । (३) भूश्वत् । (s) विचित्रलेखा ।