পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৯২

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वथायाँ महाश्वतादर्शने पुण्डरीकस्यावस्था । 8ፈቧ मयमिव तमुद्दशमुपदर्शयती लोचनयुगलख्य विसर्पोिभिरशुसन्तान`र्यदृच्छ्याच्छ्ोदसलिलमपहाय विकचकुवलयवनरिव गगनतलमुत्पतितैररुध्यन्त दश दिश (च) । तया तु तस्यातिप्रकटया विछत्या द्दिगुणोक्कतमदनावेशा तत्चणमहमवण नयोग्या (१) कामप्यवस्थामन्वभवम् (क) । इयञ्च मनस्यक्रवम—'अनेक-सुरत समागम लास्य लीलोपदेशोपध्यायी मकरकेतुरेव विलासानुपदिशति, अन्धथा विविध रसासङ्ग ललितैष्वीट्टशेषु व्यतिकरेष्वप्रविष्टबुड़ेररय जनस्य कुत ड्रवेयम (२) .حس۔ मञ्चरौव कपीलतलासङ्गिनौ गण्डरह्यलीत्पव्रा खदसजिलशैकरजालिका घर्खजलविन्दुश्रणि समद्दशत । अत्र द्रव्योत्प्र चाखद्धार । (च) मदेिति । किश्च मम ट्श् लंघ्रेौत्या षक्षरूीक्ालजनितालन्ट्रल विश्तारितस्य उक्तलि ऊङ् काले लींक्तः कनौनिकाष्ठय यस्य तख तमुद्देश तत् रह्यान पुण्डरौकभयनिव लीचनथो श्वेतत्वात् प्रितपद्मब्याप्तभिव उपदण यत प्रत्याययत् खीचनयुगखस्य विसपि भि प्रसारिभि प्र शुसन्तान किरणप्रवाहै भच्छोदस्य सरस सलिलमपहाय गगनतलम् उत्पतितौरुद्दगत विकचकुवलयवर्नरिव प्रस्फुटितनौलीत्पलवन रिव ह्यितै तेर्षा किरणानान्तु नौखतारोत्पन्नत्व न नौलत्वादिति भाव दश दिश प्ररुध्यन्त प्राच्छाद्यन्त । अत्र प्रथमा क्रियीत्मचा हितौया च जात्युनि चा तथा दश दिशामवरोधावम्बन्धऽपि तत्सम्बन्धीशा रतिशयोक्तिरित्य तासामङ्गाङ्गिभावेन खडर । (क) तयेति । भतिप्रकटया प्राधिक्य न प्रकाशितया विक्वत्या कामविवारैरग्न । बण नस्य योग्या न भवतौत्य वण नयीग्या तम् । (ख) इदमिति । अनेकै नानाविधा यै सुरतसमागमा रतिससगस्त एव खास्यर्खौला नृत्थव्यापारास्तासाम् उपर्दशे शिदादाने उपाध्याय शिचक मकरकेतुमदन एव विलासान् लोकानां लीलाकटांचपातादिविधमान उपदिशति शिचयति । अन्यथा मकरकेतुकत कोपर्दशाभावे र स्यन्त भाखाद्यन्त भशुभूयन्त ये ते रसा शब्दादयी भौग्यविषया विविधानf रसाना शब्दस्यअदिविषयाणाम् भासङ्ग न सर्भोगसम्यके ण तज्जनिितव चचगम्न नेत्यथ खलितषु मनैोइरेषु ईट्टीषु व्यतिकरैषु सविलासदृष्टिपातसम्वन्धी षु अप्रविष्टा तपखितया तदनभिक्षत्वादलब्धप्रवंशा কুসুমমঞ্জরীর হয় তাহারও গণ্ডস্থলে ঘৰ্ম্মজলবিন্দুসমূহ দেখা যাইতে লাগিল ক্ষে) এবং তাহার নয়নযুগল আমাকে দেখিয়া আনন্দে বিস্ফাবিত হইল তীব দুইটী উপরে উঠিল , সুতবা সেই নয়নযুগল সেই স্থানটাকে যেন শ্বেতপদ্মময় বলিয়া প্রতীতি জন্মাইতে লাগিল এবং সেই নয়নযুগল হইতে কিবণজাল নির্গত হ’য় দশ দিক আবৃত করিল , তখন বোধ হইতে লাগিল—যেন প্রস্ফুটিত নীলোৎপলবন ইচ্ছানুসারে অচ্ছেদসরোববের জল পরিত্যাগ করিয়া আকাশে উঠিয়াছে। (ক) কিন্তু তাহার সেই কামবিকার অত্যন্ত প্রকাশ পাইয়া আমার কামবিকারকে দ্বিগুণ কবিয়া তুলিল। তখন আমি বর্ণনাব অধোগ্য কোন অনিৰ্ব্বচনীয় অবস্থা অনুভব করিতে লাগিলাম (খ) এব এইরূপ মনে করিতে লাগিলাম যে নানাবিধ সম্ভোগরূপ নৃত্যশিক্ষাব অধ্যাপক কামদেবই লোকের কটাক্ষপাতপ্রভৃতি বিলাসিত শিখাইয় থাকেন (१) तत्चणमश्मवण नयीग्यां । (२) कुत इयम् ।