বিষয়বস্তুতে চলুন

পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/৪৭

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটিকে বৈধকরণ করা হয়েছে। পাতাটিতে কোনো প্রকার ভুল পেলে তা ঠিক করুন বা জানান।
দেবপালদেবের তাম্রশাসন।

१५ रण्णादेव्याः पाणि र्जगृहे गृहमेधिना तेन॥(৯)
धृततनु रियं लक्ष्मीः साक्षात् क्षिति र्नु शरीरिणी
किमवनिपतेः
१६ कीर्त्ति र्मूर्त्ताऽथवा गृहदेवता।
इति विदधती शुच्याचारा वितर्कवतीः प्रजाः
प्रकृति-गुरुभि र्या शुद्धान्तं गुणै-
१७ रकरोदधः॥(১০)
श्लाघ्या पतिव्रतासौ मुक्ता-रत्नं समुद्र-शुक्तिरिव।
श्रीदेवपालदेवं प्रसन्न-वक्त्रं सुत मसूत॥(১১)
१८ निर्म्मलो मनसि वाचि संयतः काय-कर्म्मणि च यः स्थितः शुचौ।
राज्य माप निरुपप्लवं पितु र्बोधिसत्व इव
१९ सौगतं पदम्॥(১২)
भ्राम्यद्भि र्विजय-क्रमेण करिभि [:स्वा] मेव विन्ध्याटवी-
मुद्दाम-प्लवमान-वाष्पपयसो दृष्टाः पुन र्बान्ध-
२० वाः।
काम्बोजेषु च यस्य वाजि-युवभि र्ध्वस्तान्य-राजौजसो
हेषामिश्रित-हारि-हेषितरवाः कान्ता श्चिरं वीक्षिताः॥(১৩)
२१ यः पूर्व्वं बलिना कृतः कृत-युगे येनागमद्भार्गव-
स्त्रेतायां प्रहतः प्रिय-प्रणयिना कर्ण्णेन यो द्वापरे।
विच्छिन्नः कलि-
२२ ना शक-द्विषि गते कालेन लोकान्तरं
येन त्यागपथः स एव हि पुन र्विस्पष्ट मुन्मीलितः॥(১৪)

^(৯)  আর্য্যা।

^(১০)  হরিণী।

^(১১)  আর্য্যা।

^(১২)  রথোদ্ধতা।

^(১৩)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

^(১৪)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

৩৭